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गुरुवार, 31 मई 2012

हम पोस्टों को आंकते नहीं , उन्हें एक दूसरे में बांटते भर हैं …..यानि आपके ब्लॉग खबरी हैं





इन दिनों हिंदी ब्लॉगजगत में सब कुछ सुनामी बिनामी टाईप चल रहा है । आ हमको पूरा अनुभव है इस बात का कि ब्लॉगिंग को अगर रफ़्तार दिलाए रखनी है तो फ़िर आप “ब्लॉगिंग को “इग्नोर नहीं कर सकते , जी मैं ब्लॉगिंग विषय की ही बात कर रहा हूं । मुझे लगता है कि ब्लॉगिंग एक ऐसा विषय है कि देर सवेर हर ब्लॉगर अपने आपको इस विषय पर व्यक्त करना या फ़िर व्यक्त होने देना चाहता है । हमारे जैसे हिंदी अंतर्जालियों , जिन्हें घर आकर सोने तक और फ़िर उठ् कर दफ़्तर जाने तक का बहुत सारा समय हिंदी अंतर्जाल से जुडे रहने के बावजूद समय कम जान पडता है , जो दर्जन भर ब्लॉग्स पर लिखने के अलावा साइट्स पर , और एक टिप्पणी करने वाले दोस्त होने के कारण , लगभग सामग्रियों का शिकारी सा हो जाता है ,उसे मैं अपनी तरह ही ब्लॉग खबरी मानता हूं । और हिंदी ब्लॉगिंग से तब भी जुडा रहता हूं जब दिनों तक न दिखाई दूं और शायद ऐसा हम सबके साथ है कि हम बहुत बार बहुत समय तक नहीं दिखते होने के बावजूद हर समय उपस्थित होते हैं , यहां मुझे डा.अमर कुमार याद आ जाते हैं , और लगता है कि खुशदीप भाई के ब्लॉग अमर कहानियां के अनमोल संकलन के लिए कहीं प्रकट हो जाएंगे और कहेंगे …बाबू मोशाय ….।

तो मैं बात कर रहा था कि पिछले दिनों कुछ सुनामी वाली पोस्टें आईं और आईं क्या रिक्टर पैमाने पर अब भी उसके झटके महसूस किए जा रहे हैं । साईड इफ़्फ़ेक्ट के रूप में महाविनाश टाईप भविष्यवाणी को फ़ेवर करने जैसी कुछ और ..आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ..वाली पोस्टें आती जाती रहीं , यानि कुल मिलाकर बेशक भारत बंद रहा हो ब्लॉगिंग बंद होने जैसे दिखने के बावजूद बंद नहीं बल्कि खुल के खुल गई सी लगने लगी । ऐसी ही दंड पेल कार्रवाई के दौरान कुछ उठा पटक इस ब्लॉग बुलेटिन से भी जुडी हुई सी लगी ,हमने स्टेटस में देखा कि एक ही लिंक से एक दिन में तकरीबन सत्तर बार हिटिंग हो रही थी वो भी लगातार लगभग पंद्रह दिनों तक , माजरा कुछ कुछ नहीं पूरा पूरा समझ में आ रहा था , लेकिन हमने कहा यहां देश में हर कोई खुल्लम खेल फ़रूखाबादी तो खेल ही रहा है , अपन चुपचाप खबरी की ड्यूटी बजाए चलें । ब्लॉग बुलेटिन की आत्मा शिवम मिश्रा जी हैं और इसकी सेहत की पूरी चिंता के अकेले डाक्टर भी , हम लोग तो कंपाऊडर भर हैं , सो उनके इस बुलेटिन के बीपी , शुगर सब जांच का प्रयोगशाला ऊ मचईले रहते हैं और जाहिर है कि उनको ही सब बातों की खबर सबसे पहले रहती है । हम अक्सर उनके शुक्रगुज़ार इसलिए भी रहते हैं कि उस देश के मुझ सहित हर कृतघ्न देशवासी को याद दिलाते रहते हैं कि याद रखना , ये जो शब्द आज हम आप भभके से कह जाते हैं वो उन तमाम लोगों के अपने जान देने के ज़ज़्बे के कारण ही तो है । इस ऊपर के प्रकरण के बाद हमने टैंप्लेट में हल्का फ़ेरबदल किया तो फ़िर शरारत हुई । और फ़िर इसकी कोशिश होती रही और आगे भी होती रहेगी हम जानते हैं । यहां एक बात बताना समीचीन होगा कि मेरा इन लिंक वाली पोस्टों को लिखने , उनसे जुडने का एक मकसद रहता है उन पोस्टों का क्रास आवागमन , एक ब्लॉग को दूसरे से मिलवाना , बस यही एक उद्देश्य , यही एक प्रयास है हमारा और हमेशा रहेगा । मैं शुरू से मानता रहा था कि इन पोस्टों का लिंक देने वाली पोस्टों का लिंक उनके ब्लॉग पर छोडने का कोई लाभ नहीं और शायद मैंने एक आध पोस्टों पर ऐसी टिप्पणी भी की थी किंतु आखिरकार गलत साबित हुआ मैंने पाया कि ब्लॉग पोस्ट लिंक वाली सभी पोस्टों की लिंक उन ब्लॉग लेखकों तक पहुंचाने से जब वे उत्सुकतावश एक दूसरी पोस्ट पर जरूर पहुंचते हैं और एक आम पाठक जल्दी में भी आधे जे ज्यादा पोस्टों पर क्लिक करके देखने की कोशिश जरूर करता है , इसलिए मैंने भी पिछले दिनों सबको एक टिप्पणी के माध्यम से सूचना दी ।  पोस्टों को पढवाने के लिए तो आपके पास एग्रीगेटर हैं ही ,…हम तो समझिए कि आपके चित्रहार हैं …..तो मैं यही स्पष्ट कर देना चाह रहा था कि ,हम पोस्ट आंकते नहीं , हम पोस्ट बांटते भर हैं ……………..कहिए कि ब्लॉग खबरी हैं , विशुद्ध रिपोर्टर टाईप से….. चलिए आज के चित्रहार दिखाते हैं आपको




रियल ड्रामा और पॉलिटिक्स है ‘शांघाई’ में

-अजय ब्रह्मात्‍मज
अपनी चौथी फिल्म ‘शांघाई’ की रिलीज तैयारियों में जुटे बाजार और विचार के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी यह फिल्म दिल्ली से बाहर निकली है। उदार आर्थिक नीति के के देश में उनकी फिल्म एक ऐसे शहर की कहानी कहती है, जहां समृद्धि के सपने सक्रिय हैं। तय हआ है कि उसे विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा। राज्य सरकार और स्थानीय राजनीतिक पार्टियों ने स्थानीय नागरिकों को सपना दिया है कि उनका शहर जल्दी ही शांघाई बन जाएगा। इस राजनीति दांवपेंच में भविष्य की खुशहाली संजोए शहर में तब खलबली मचती है, जब एक सामाजिक कार्यकर्ता की सडक़ दुर्घटना में मौत हो जाती है। ज्यादातर इसे हादसा मानते हैं, लेकिन कुछ लोगों को यह शक है कि यह हत्या है। शक की वजह है कि सामाजिक कार्यकर्ता राजनीतिक स्वार्थ के तहत पोसे जा रहे सपने के यथार्थ से स्थानीय नागरिकों को परिचित कराने की मुहिम में शामिल हैं।

Thursday, May 31, 2012


पारा चढ़ता जाये रे…
आज मई माह का आखिरी दिन है। यह सबसे गर्म रहने वाला महीना है। ज्येष्ठ मास का आखिरी मंगल जिसे यहाँ लखनऊ में ‘बड़ा मंगल’ के रूप में मनाया जाता है वह भी बीत चुका है। बजरंग बली को खुश करने लिए भक्तजन इस महीने के सभी मंगलवारों को पूरे शहर में नुक्कड़ों और चौराहों पर भंडारा लगाते हैं। खान-पान के आधुनिक पदार्थों का मुफ़्त वितरण प्रसाद के रूप में होता है। कम से कम मंगलवार के दिन शहर में कोई भी व्यक्ति भूखा-प्यासा नहीं रहने पाता। गरीब से गरीब परिवार के सदस्य भी छक कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। लेकिन गर्मी का मौसम जब उफ़ान पर हो तो एक दिन की राहत से क्या हो सकता है। पारा तो चढ़ता ही जा रहा है। देखिए इस ताजे गीत में :
ग्रीष्म-गीत
  पारा चढ़ता जाये रे, आतप बढ़ता जाये रे...
बैठ बावरा मन सिर थामे गीत बनाये रे...Confused smile

हवा आग से भरी हुई नाजुक तन को झुलसाये
छुई-मुई कोमल काया अब कैसे बाहर जाये
रिक्शे तांगे बाट जोहते काश सवारी आये
निठुर पेट की आग बड़ी जो देह थपेड़े खाये
भीतर बाहर धधकी ज्वाला कौन बुझाए रे...
                      पारा चढ़ता जाये रे, आतप बढ़ता जाये रे...Sick smile




बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


ईरान पर प्रतिबन्ध
कब और कैसे?
   आज के समय की तकनीकी ने कुछ लोगों के लिए दिन रात काम करते रहना संभव बना दिया है। तकनीकी के कारण हमें काम करने के लिए कार्यस्थल पर ही रुकना आवश्यक नहीं है, हम अपना काम घर पर भी ला सकते हैं या अपने साथ अपनी छुट्टियों पर ले जा सकते हैं और उसे ज़ारी रख सकते हैं। जब तक बिजली उपलब्ध है, हमारा काम भी बिना रुके चलता रह सकता है।
   पिछली सर्दियों में बर्फबारी ने कई स्थानों और वहां के लोगों को ठहरा दिया। बर्फीले तूफनों से कई जगहों पर पेड़ और शाखाएं टूटकर गिर गए जिससे सड़कें रुक गईं और लोगों को घरों में रहना पड़ा। बिजली के तार भी गिर गए जिससे लोगों को ठंड और अन्धकार में समय बिताना पड़ा, और बिजली के अभाव में वे कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं रहे।
अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह ईरान से तेल आयात कम करे जबकि भारत की उर्जा जरूरतों को पूरा करने में ईरान की विश्वसनीय भूमिका है जबकि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वसनीय साथी नहीं रहा है। कई दशक पहले तारापुर परमाणु रिएक्टर की यूरानियम फर्जी बहानो के आधार पर पश्चिमी देश बंद कर चुके हैं। पूरी दुनिया में अमेरिका व पश्चिमी देश विकासशील व छोटे देशों के लिये ब्लैक मेलर साबित होते हैं और धीरे-धीरे उस देश की संप्रभुता का ही हरण कर लेते हैं।
भारत यात्रा पर आए ईरान के विदेश मंत्री अली अकबर सालेही से बातचीत के बाद विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने स्पष्ट किया कि भारत की बढ़ती घरेलू मांग को देखते हुए ईरान तेल का महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। सालेही ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के विशेष दूत के तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अगस्त में तेहरान में होने वाल गुट निरपेक्ष आंदोलन (नैम) की शिखर वार्ता का न्योता देने भारत आये हैं।


31 May, 2012


शब्दों की लुकाछिपी
- रश्मि प्रभा...

भावनाओं की आँधी उठे
या शनै: शनै: शीतल बयार बहे
या हो बारिश सी फुहार
सारे शब्द कहाँ पकड़ में आते हैं !
कुछ अटक जाते हैं अधर में
कुछ छुप जाते हैं चाँदनी में
कुछ बहते हैं आँखों से
और कभी उँगलियों के पोरों से छिटक जाते हैं
तो कभी आँचल में टंक जाते हैं
......
मैंने देखा है कई बार इनको
पानी के ग्लास में तैरते
तो कभी अपने बच्चों की मुस्कान में
महसूस किया है अपनी लम्बी सी सांस में
माँ की ख़ामोशी में
लोगों की अतिरिक्त समझदारी में
ईश्वर की आँखों में
कामवाली की बातों में
चिलचिलाती धूप में खड़े असहाय बच्चे में
.....


बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


गुटका और सिगरेट हैं ओरल कैंसर की जड़
क्या आप तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला, पान, गुटखा आदि के बगैर रह नहीं सकते? क्या इस कारण आपके मुंह में तकलीफ रहने लगी है? सावधान हो जाइए, विशेषज्ञ कहते हैं कि यह ओरल यानी मुंह का कैंसर हो सकता है। धर्मशिला हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के सर्जिकल ओनकोलॉजिस्ट डॉ. अंशुमन कुमार और डॉ. मुदित अग्रवाल बता रहे हैं कि ओरल कैंसर क्या है, यह कैसे होता है और इससे कैसे बच सकते हैं।
ओरल कैंसर यानी मुख का कैंसर, कैंसर के कारणों में आठवां प्रमुख कारण है। इसमें मुंह तो प्रभावित होता ही है, होंठ और जुबान पर भी इसका असर पड़ता है। वैसे यह गाल, मुंह के तालु, मसूड़ों और मुंह के ऊपरी हिस्से में होता है। इसके लक्षण आमतौर पर पकड़ में नहीं आते।

प्रारम्भिक जांच
ओरल कैंसर की जांच के दौरान सबसे पहले रोगी के स्वास्थ्य की पूर्व परेशानियों का पता लगाया जाता है। इसके बाद रोगी की धूम्रपान की आदतों का अध्ययन किया जाता है कि वह तंबाकू का आदी है या शराब का अधिक प्रयोग करता है या सिगरेट पीता है। विशेषज्ञ होठों, ओरल कैविटी, फारनेक्स (मुंह के पीछे, चेहरा और गर्दन) में शारीरिक परीक्षण द्वारा किसी भी तरह की सूजन, असामान्य या धब्बे वाले टिश्यू और घाव की जांच कर यह निर्णय लेते हैं कि कि कैंसर का कारण क्या है और वह किस स्थिति में है।

बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


पेश है सबसे तेज लोड होने बाला ब्लॉगर टेम्प्लेट
5/31/2012 06:55:00 PM | Labels: Widget 0 टिप्पणियाँ

मनोज जैसवाल : सभी पाठको को मेरा प्यार भरा नमस्कार। आज तकनीकी पोस्टो के क्रम में आपके लिए पेश है,टेम्पलेट की एक नई सीरिज़;; मेरा पहला ब्लॉगर टेम्पलेट इसको प्राप्त करने के लिए मेरी कोई शर्त नहीं है.आप चाहें तो इस ब्लॉग को फालो करें यह आपकी मर्ज़ी पर निर्भर करता है.फिलहाल मैं इसे विजेट के रूप में पेश कर रहा हूँ.

पेश है सबसे तेज लोड होने बाला  ब्लॉगर टेम्प्लेट


आज मैं बहुत खुश हूँ कि मैं एक नया  टेम्पलेट साझा कर रहा हूँ   सबसे तेज लोड होने बाला  ब्लॉगर टेम्प्लेट . यह टेम्पलेट्स कई सुविधाओं से युक्त है है. यह एक आकर्षक डिजाइन  है,  0.1 सेकंड. गूगल पेज स्पीड से पता चलता है 95/100 की गति लोड हो रहा है इस टेम्पलेट के लिए अपने उपयोगकर्ताओं को अपनी वेबसाइट लोड करने के लिए एक धीमी कनेक्शन के साथ बहुत आसानी से लोड करने में मदद करता है. इस टेम्पलेट में,यहाँ कुछ अद्वितीय है. जब माउस हार्वर तकनीक का प्रयोग किया गया है.आप डेमों पर जा कर इसे देख सकते हैं,व् डाऊनलोड पर क्लिक कर XML फाइल अपने हार्ड ड्राइव पर सेब कर सकते हैं.



अगले मोड़ पर ही...!
प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at 31 मई 2012
किसी भी बात पर जब
मिथ्याभिमान होने लगे,
तो, याद रहे...
तुमसे भी कोई बड़ा है!
कितना भी
वृहद् हो गगन,
अपने मद में हो लें हम
कितने भी मगन;
वक़्त
सबको नाप लेता है,
सारे हिसाब देख लेने को
वो अगले मोड़ पर खड़ा है!

नैनीताल भाग 3


आज तुझसे प्यार करने को दिल चाहता हैं ...
तुझे छूने, तुझमें समाने को दिल चाहता हैं ....





हम सपरिवार ता. 9 को मुम्बई से चले थे  नैनीताल :----


नैनीताल भाग  1 पढने के लिए यहाँ क्लिक करे ...
नैनीताल भाग 2 पढने के लिए यहाँ क्लिक करे ....

सुबह का रोमानी मौसम



31/05/12


कलयुग आ गया ?
बहुत दिनो के बाद आज मन ने कहा चलो आज कुछ लिखे, तो सोचा क्या लिखूं? तभी मन ने कहा जो तुम इस दुनिया मे देखते हे वोही लिखो....यह कोई कहानी नही एक सच्ची घटना हे, जो आज मै आप सब के सामने रख रहा हुं कुछ आंखॊ देखी तो कुछ कानो सुनी... पिछली बार जब अपने शहर गया तो देखा कि बिल्लो भाभी(बदला हुआ नाम) जो उम्र मे हम से बहुत बडी थी, अपनी कोठी के गेट पर भिखारियो की तरह बेठी थी, बाल बिखरे हुये, लगता था शायद कई दिनो से नहाई ना हो,शरीर बहुत कमजोर सा,आंखे धंसी हुयी सी,तभी कोठी का गेट खुला ओर एक नोकर एक अखबार मे रात का बचा हुआ खाना भाभी के सामने रख गया, मुझे बहुत अजीब सा लगा, अजीब इस लिये कि कभी इस भाभी की आवाज ही इस घर का कानून होती थी, जो कह दिया सो कह दिया....ओर आज..... मैने भाभी को राम राम कही ओर उन के पांव छुये,थोडी देर तो मुझे ताकती रही फ़िर बोली राज तू कब आया, मैने कहा अभी अभी.... फ़िर भाभी खुब रोने लगी ओर अपने लडको को खुब कोसे ओर कहने लगी कि राज देख कलयुग आ गया हे, मैने इन बच्चो के लिये क्या कुछ नही किया ओर इन कमीनो ने अपनी बीबियो के कहने पर मेरा हाल क्या कर दिया....भाभी के पास से बहुत बदबू भी आ रही थी, मै कुछ देर बेठा ओर फ़िर अपने घर वापिस आ गया. फ़िर भाभी की बाते कि राज **कलयुग आ गया हे***


रायसीना हिल्स पर दादा की दावेदारी
Posted by Kulwant Happy "Unique Man"

प्रवीण कुमार की कलम / जी न्‍यूज डॉट कॉम के सौजन्‍य से
सभी सियासी दल चाहते हैं कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी जिन्हें सभी प्यार से दादा कहते हैं, देश के सर्वोच्च पद पर सुशोभित हों। खुद दादा भी चाहते हैं देश का राष्ट्रपति बनना। अगर कोई नहीं चाहता है तो वह है 10 जनपथ जहां से देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का संचालन होता है। हां खुद दादा की पार्टी ही नहीं चाहती है कि प्रणब दा राष्ट्रपति बनें। कांग्रेस का कहना है कि प्रणब कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक हैं सो पार्टी उन्हें नहीं छोड़ सकती। दादा को पार्टी का संकटमोचक बताकर राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी नहीं बनाने के पीछे का सच कुछ और ही कहानी को बयां करती है। इस कहानी की बात हम आगे करेंगे, लेकिन उससे पहले हम दादा के अंतरमन में झांककर देखते हैं कि क्या वाकई दादा राष्ट्रपति बनना चाहते हैं? क्या दादा का कद वाकई इतना बड़ा हो चुका है कि देश उन्हें इस सर्वोच्च गरिमापूर्ण पद पर सुशोभित करे?


May 30, 2012


आप क्या कहते हैं?
कई बार कोई पोस्ट पढ़ते पढ़ते मन में हजारों सवाल उठने लगते हैं या कई यादें ताजा हो जाती हैं टिप्पणीई में अगर सब लिखने लगें तो पूरी पोस्ट ही वहां बन जाये। ऐसा ही कुछ आज मेरे साथ हुआ।
आज प्रवीण पांडे जी की पोस्ट पढ़ी, ' लिखना नहीं दिखना बंद हो गया था' http://praveenpandeypp.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html
पोस्ट पढ़ते ही कई सवाल घुमड़ रहे हैं मन में और जवाब तो आप लोगों से ही मिल पायेगें। तो बताइये
1) क्या आप के भी ब्लॉग के ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर आप के लिखे का इंतजार रहता है उन्हें?
2) क्या ये पाठक जन सिर्फ़ पढ़ते ही हैं या टिपियाते भी हैं? अगर नहीं टिपियाते तो आप को कैसे पता चलता है कि वो आप के पाठक हैं?
3) क्या ये पाठक  आप के लिये पहले अजनबी थे या आप के अपने परिवेश में से ही हैं, जैसे आप के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, इत्यादी?


31 मई 2012


निखंड घाम में !

निखंड घाम में काम करता आदमी,
पसीने को भी तरसता है ,
बंद कमरों में बैठे भद्र जन
बाहर का तापमान नाप रहे हैं ||
निखंड घाम में बाहर जाता आदमी
होठों से प्यास को दबाता है,
मॉल में घूमते बड़े लोग
ठंडी बियर डकार रहे हैं ||
निखंड घाम में सफ़र करता आदमी
गमछे से मुँह ढाँपता है,
बी एम डब्ल्यू में बैठे लोग
पॉप संगीत पर ठहाके मार रहे हैं ||


Thursday, May 31, 2012


अपने लिए
वे
अपने लिए
नारी की
हरेक परत से
गुज़रना चाहते हैं
सकल पदार्थ
प्यार ,
अनुभूतियाँ ,
चमत्कार ,बाज़ार ,
सरंक्षण ,
सभी कुछ
अपनी सांसों में समेट
नारी की
नैसर्गिकता के
त्याग भाव से
चौंकते हैं



आवारा बादल - 2



आवारा बादल हूँ मैं


कभी यहाँ तो कभी वहाँ
बरसता रहा,

लेकिन अब
मरुभूमि पर बरसने की
चाहत है
बरसूँ कुछ इस तरह
कि खिल उठे फूल
रेगिस्तान में
और जलती हुई रेत
शीतल हो जाये,

आवारा बादल हूँ मैं   
मेरी फितरत है
भटकने की ,


Home » » पर्यावरण

पर्यावरण

By DEEPAK SHARMA KULUVI दीपक शर्मा कुल्लुवी









पर्यावरण
यूँ तो पर्यावरण की बातें हम सब करते हैं
लेकिन रात में घर का कचरा गली में भरते हैं
दोष देते सरकार को हम ऐसा क्यों होता है
शायद हमको जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता है
जब तक हम न सुधरेंगेकोई भी नहीं सुधरेगा
इल्ज़ाम का क्या है लगाते रहो प्रदूषण बढ़ता रहेगा


20120531


तिनका तिनका जोड़ते फिल्मकार

अच्छी फिल्म बनाने के लिए एक अच्छी कहानी की ही नहीं, भारी-भरकम बजट की भी जरूरत होती है. इसीलिए कहा जाता है कि फिल्में बनाना बच्चों का खेल नहीं, यह पैसों का खेल है. आज के माहौल में तो यह और भी जोखिम भरा काम हो गया है, क्योंकि जहां स्टार फिल्म से जुड़ने के लिए मोटी रकम लेते हैं, वहीं पैसे लगाने वाले भी अच्छा रिटर्न चाहते हैं, जबकि बॉक्स ऑफिस पर सफलता की कोई गारंटी नहीं होती. ऐसे में कई फिल्मकार अच्छी कहानियां और सोच होने के बावजूद पैसों की किल्लत की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते. ऐसे में कुछ फिल्मकारों ने एक नयी राह निकाल ली है. अब कई फिल्मकार अपने सोच को अंजाम देने के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहे हैं. बॉलीवुड के इस नये ट्रेंड पर अनुप्रिया अनंत की विशेष रिपोर्ट..


बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


आई. पी. एल. - यह खेल अपने को हज़म नहीं होता ..................
आई. पी. एल. ........यह खेल अपने को हज़म नहीं होता ....................

यह खेल अपने को हज़म नहीं होता
जीत जाए कोई तो खुशी नहीं होती
किसी के हारने पर ग़म नहीं होता |

इसमें ............

मिर्च मसाले हैं
ग्लैमर के तड़के डाले हैं
दर्शक ठुमकों के मतवाले हैं
खेल देखना छोड़ कर
चीयर गर्ल्स पर नज़र डाले हैं |

इसमें ...............

Wednesday, May 30, 2012


आखीर कब ?
गर्भपात बोला जाये या भ्रूण हत्या ये एक वध है..... फिर इसमें सजा इतनी कम क्यू ?  अगर डॉक्टर पकड़ी जाये तो उसका कुछ सालो के लिए प्रमाणपत्र ख़ारिज किया जाता है | पर उनका क्या जो लोग ये हत्या करवाते है माँ-बाप, रिश्तेदार उनको कोई सजा क्यू  नहीं ?
हर  बार खबर में डॉक्टर होते है...मै डॉक्टर का कोई पहलू ले नहीं रही हू क्यू की उनको पैसे की उतनी लालच दी जाती है आज ये डॉक्टर नहीं तो कोई अवैध दाया या डॉक्टर करेगी | पर दोष तो उनका है जो ये काम करवाना चाहते है| तो इनके लिए सजा का कोई नियम क्यू नहीं है ?
कब  लगेगी इस पे रोक? कब उठेगे हमारे कदम?  कब होगी बेटीया सच में लाडली? कब जागेगा ये हमारा समाज ?
आखीर कब ?




बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


परिवार की पत संभाले, वही है पत्नी..!!
परिवार की पत संभाले, वही है पत्नी..!!(इज्जत)

(Courtesy Google images)
प्रिय मित्र,
एक बार, एक पति देव से किसी ने सवाल किया,"पति-पत्नी के बीच विवाह - विच्छेद होने की प्रमुख वजह क्या है?"
विवाहित जीवन से त्रस्त पति ने कहा,"शादी..!!"
हमें तो इनका जवाब शत-प्रतिशत सही लगता है.!!
मानव नामक नर-प्राणी,  वयस्क होते ही, अपना जीवन साथी पसंद करने के बारे में, अपनी बुद्धिमत्ता और समझदारी से,कुछ ख्याल को पाल-पोष कर,उसके अनुरूप किसी नारी के साथ विवाह के बंधन में बंध जाता है ।



खुदा की शनाख्त मुश्किल होगी !

  • क्रिकेट के मैदान के बाहर बैठी  छोटी लड़की  इसलिए दुखी है क्यूंकि उसे कोई क्रिकेट नहीं खेलने देता ,उसके बराबर  में बैठा लड़का वो इसलिए दुखी है क्यूंकि वो तीसरी गेंद पर ही आउट हो गया .वो दुखी है पर लड़की के दुःख में शामिल नहीं है दुःख का  सेंट्रल पॉइंट  बदलता रहता है,   हम  अपने  दुखो के "जूम" करके देखते है.!
  • मार्क्स ,ओशो,   कबीर या  विवेकानंद    इंटेलेकचुवलटी  में कुछ जोड़  करने वास्ते नहीं है  न कागजी हूनर को तराशने के लिए . वे  रूह की  मरम्मत वास्ते है . आवाज लगाते हुंकारे है जो बरसो से कह रहे है के  दुःख में इंटरफेयर  करो  दूसरो के दुःख में भी  .
  • तकलीफों के अपने तयशुदा रास्ते होते है   खुदा तकलीफों के दरमियाँ न कोई हदबंदी करता है न कोई स्पीड ब्रेकर जैसी किसी  चीज़ में यकीन . वो  शायद तकलीफों का बिचोलोया है ऐसा बिचोलिया जो अपने पेशे के लिए  बड़ा  संजीदा  है.तभी कुछ  नस्ले खुरदुरी मिलती है . वैसे इस दुनिया के  सारे साधारण लोग खुरदुरे ही है
  • .शरीर के निचले हिस्से से बेकार उस १४ साल के लडको को उसका पिता गोद में उठाकर क्लिनिक में लाता है .माथे पर छोटे छोटे दाने है , उनकी डिटेल बतलाते बतलाते वो उसके माथे पर गिर आये उसको बालो को ठीक करता है . लड़का कुछ अस्पष्ट  सा बोलता है .पर पिता में उसकी भाषा को  ट्रांसलेट कर देने  के टूल किसी "शै " ने दे दिए है   .ऐसे पिता याददाश्त को आसानी से नहीं फलांगेगे  .मेमोरी सैल में कई सालो जिंदा रहेगे . शायद ताउम्र !


धरती पर यमराज के एजेंट --- ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, बृहस्पतिवार, 31 मई 2012

सुबह की सैर पर आज हल्की फ़ुल्की चर्चा ने गंभीर मोड़ ले लिया। बंसी काका कहने लगे - "अब बीमार होने से भी डर लगने लगा है, आम आदमी चाहता है कि बीमार ही न हो। सोचने से क्या होता है? पता नहीं कब धरती के यमराजों (डॉक्टर, दवा विक्रेता और दवा निर्माता) के हत्थे चढ जाए, बच गया तो घर द्वार बेच कर सड़क पर आ जाएगा अन्यथा राम नाम सत्य तो मान ही लो।" बंसी काका की बात पर मुझे भी सोचना पड़ा। अगर राम नाम सत्य हो गया तो परिजनों को दोहरी मार झेलनी पड़ेगी, परिजन की मृत्यू एवं कर्जे के दलदल में फ़ँसने की। धरती के यमराजों का गिरोह उन्हे कहीं का नहीं छोड़ेगा। हर डॉक्टर का अपना बंधा-बंधाया पैथालाजिस्ट है। अगर उसके सजेस्ट किए पैथालाजिस्ट के पास न जा कर किसी दूसरे के पास चले गए तो दोहरा खर्च होगा और डॉक्टर के बताए पैथालाजिस्ट से ही टेस्ट करवाने पड़ेगें । कई डॉक्टरों और पैथालाजिस्टों में इतनी सेटिंग होती है कि डॉक्टर स्वस्थ मरीज को भी बहुत सारी जाँच लिख देता है और पैथालाजिस्ट सैम्पल लेकर बिना जाँच किए ही रिपोर्ट दे देता है कि सारे टेस्ट नार्मल हैं। टेस्ट करने की ज़हमत कौन उठाए, बिना किए ही रिपोर्ट देकर लूट का माल आधा-आधा ईमानदारी से बांट लिया जाता है।


नहीं चाहिए बंद
बंद... बंद... बंद एक बार फिर बंद... कभी भारत बंद, कभी बिहार बंद, कभी आंध्र बंद... क्या हो गया है भारतवासियों को, क्या केवल बंद ही करना जानते हैं या कुछ खोलना भी जानते हैं। पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें जहां लोगों को हलाकान किए हुए है... तो वहीं इस बंद ने उसे और तबाह कर दिया है। जगह-जगह चक्काजाम, रेल रूट बाधित, तोड़फोड़, प्रदर्शन... भइया, जिन ट्रेनों को आपने रोका हुआ है, उसके अंदर बैठने वालों का क्या कसूर... क्या उन्होंने ही पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए हैं। आम जनता को क्यूं परेशान कर रहे हो। क्या किसी ऑफिस में इस आधार पर छुट्टी मिली होगी कि आज भारत बंद है... सोचिए इस चिलचिलाती धूप में उनकी परेशानी... कि उन्हें जगह-जगह चक्काजाम में कितनी मुसीबत उठानी पड़ेगी। शायद 50 मिनट का रास्ता 2 घंटे में पूरे हों। उन छात्रों का क्या जिन्हें शिक्षण संस्थानों में जाना होगा। उन महिलाओं का क्या, जिन्हें दैनिक आवश्यकताओं के लिए बाहर निकलना होगा, उन बीमारों का क्या, जिन्हें तुरंत मेडिकल सुविधाएं चाहिए होंगी और रेल यात्रियों का क्या... जिन्हें नहीं पता होगा कि वे कब पहुंचेंगे। और एक बात और मैंने विजुअल देखे... जो भी उत्पात मचा रहे हैं.. या जो भी ट्रेनों को रोकने के लिए उस पर चढ़े हुए हैं... एक भी सिन्सियर नहीं दिख रहा। न कीमतों पर और न आम आदमी की समस्याओं पर... बस एक उन्माद दिखाई देता है जो चढ़ा है और भारतीयों की खास चारित्रिक विशेषता... मतलब बड़ी जल्दी ही उतर भी जाएगा।

तम्बाकू निषेध दिवस पर कुछ बातें

तम्बाकू निषेध दिवस पर कुछ बातें

मनोज कुमार

  • आज यानी 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस है। फिर भी बढ़ रहा है तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल और यह तम्बाकू धीमे जहर के रूप में समाज के सभी वर्ग के लोगों को प्रभावित कर रहा है।
  • सार्वजनिक स्थानों पर खुले आम धूम्रपान से अनजाने में ही धूम्रपान नहीं करने वालों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
  • भारत का हर दूसरा व्‍यस्‍क पुरूष बीड़ी, सिगरेट या तंबाकु के नशे का गुलाम है।
  • अंतराष्‍ट्रीय व्‍यस्‍क तंबाकू सर्वेक्षण के मुताबिक भारत की 34.6 फीसदी व्‍यस्‍क आबादी को तंबाकू की लत है।
  • इनमें से 47.9 फीसदी आबादी पुरूषों की है। महिलाओं में यह आंकड़ा 20.3 फीसदी है।


असुविधा....

रहिमन यह घर प्रेम का

बृहस्पतिवार, 31 मई 2012


आह, त्रिलोचन को भूला मैं
शिरीष कुमार मौर्य हिन्दी की युवा कविता को पहचान देने वाले कवि हैं. उनकी कविताओं से तो हम सब परिचित हैं ही, लेकिन गद्य में भी उन्होंने खूब काम किया है. शिरीष भाई की आलोचना की एक बड़ी खूबी यह है कि वह एक बोझिल प्राध्यापकीय भाषा और उद्धरणों के सहारे बौद्धिकता का आतंक पैदा करने की जगह अपनी कविताओं की तरह ही गद्य में भी एक आत्मीय वातावरण रचते है. इधर  एक अच्छा काम उन्होंने यह किया है कि अब तक के लिखे को एक किताब के रूप में ले आए हैं. भला हो उनके मित्र का जिसने उनसे यह काम करा लिया. अब खबर यह है कि किताब का पहला संस्करण पहले तीन महीनों में बिक चुका है और अब अगला संस्करण शिल्पायन से शीघ्र होगा. हम जैसे ढीठ और कभी न संतुष्ट होने वाले दुष्ट दोस्तों के (दु)आग्रह को मानते हुए उन्होंने इसे परिवर्धित करने का भी निर्णय लिया है. ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ उनकी इस किताब - "लिखत-पढ़त" से त्रिलोचन पर लिखा एक आत्मीय आलेख. किताब " शाइनिंग स्टार " प्रकाशन से आई है और ज़्यादा जानकारी के लिए प्रकाशन  प्रबंधक  डी एस  नेगी से 8954341365 पर संपर्क  किया जा सकता है.

31 May, 2012


मैं बूँद ... कहाँ जाऊं ...?
Labels: अध्यात्म.हिंदी कविता. गुण., प्रेम;;भावनाएं., भक्ति ; विचार .
जब तक सांस चलती है तभी तक जीवन है ....!!हम चाहें तो सार्थक  कर्म कर उसे सवाँर  लें और प्रभु के चित्त में स्थान पा लें  या ....पछताते रहें .....समय तो निकल ही जायेगा ...रुकेगा तो नहीं ............
  आँख से 
छूट कर ...
टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
पात सी झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
चैन न पाऊँ ...अकुलाऊँ .!!
प्रभु चित्त ही मेरो देस ..
अब काहे  पछताऊँ ?
नयन नीर ..धर धीर ..
पी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम
तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ...

बुधवार, 30 मई 2012


आज का प्रश्न-307 question no-307
आज का प्रश्न-307 question no-307

प्रश्न-307: गाड पार्टिकल्स God Particles या  ईश्वरीय कण क्या हैं?

चलिए इसी के साथ मुझे अब दीजीए इज़ाज़त , कल मिलेगा कोई और ब्लॉग खबरी आपके साथ फ़िर कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ । शुक्रिया और आभार । अपना विश्वास और स्नेह बनाए रखें ।

बुधवार, 30 मई 2012

सब खबरों के बीच एक खुशखबरी - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

लीजिये सब से पहले आपको एक खुशखबरी सुनता हूँ क्यूँ कि संभव है ... कल होने वाले भारत बंद , आईपीएल मे कोलकाता की जीत के जश्न , प्रधानमंत्री जी की ईमानदारी , सरकार की बेईमानी , विपक्ष की चुप्पी , एन डी तिवारी के खून , पूनम पांडे की नई तस्वीर , पेट्रोल के दाम की चिंता और बाकी रोज़ की आपाधापी मे ... आपकी नज़र इस खबर पर न पड़े ...

भारत के शीर्ष शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने एक बार फिर देश का नाम रौशन करते हुए विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम कर लिया है। उन्होंने विश्व शतरंज चैंपियनशिप में चैलेंजर बोरिस गेलफेंड को मात देकर यह कामयाबी हासिल की। आनंद पांचवीं बार विश्व चैंपियन बने हैं।
इससे पहले इन दोनों दिग्गज खिलाड़ियों के बीच 6-6 से मुकाबला टाई हुआ था जिसका फैसला आज रैपिड शतरंज टाई ब्रेकर के जरिए किया जाना था लेकिन यहां पर गेलफेंड की एक ना चली और आनंद ने 2.5-1.5 की जीत के साथ खिताब को अपने नाम करने में सफल रहे। 

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से विश्वनाथन आनंद को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

सादर आपका 


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काहे जी ... जैसे तैसे तो लिखे है 

माँगोगे तो भी कौन सा मिलने वाला है 

इसमे क्या शक है 

हम्म 

बहुत महेंगी है आजकल 

ब्लॉगिंग कब से खेल बना जी 

नई दुकान खोली क्या 

गर्मी के कारण 

न ही दिलाओ तो अच्छा 

क्या 

जय हो ...

हिंग लगे न फिटकरी और काम हो जाये 

काम की बात 

लगाए किसने 

सच मे छुट्टी न कर दें 

यहाँ लिखो चाहे न लिखो ... मालिक दिखते रहो 

गौर न कीजिएगा ... इनको सेंटीयाने की है बीमारी ... कहीं नहीं जा रहे है ... अपने साथ साथ हमको भी सेंटीया रहे है 

किधर लिए जाती है   

आप बताएं 

जिया तू हज़ार साल 

हम भी चलेंगे 


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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिंद !!


 

मंगलवार, 29 मई 2012

दो पटरी पे दौडी रेल ..देखो पोस्ट की ठेलमठेल


एक ठो बांचम बांच पोज


लीजीए आज फ़िर से आपको हम अपनी चिर परिचित ,...झा जी इश्टाईईल वाली दो लाइना पढवाते हैं , इसी बहाने आपको कुछ खूबसूरत पोस्ट पे टहला के आते हैं , बांचा जाए सरकार

लघु प्रेम कथा -लप्रेक ..
बहुते जोरदार कथा ..बजोक


अन्तर्संबंध :
सुंदर निबंध 


पेट्रोल वृद्धि के खिलाफ़ मेरठ में सडक पर उतरेंगे सपाई :
आयं , तो मूल्य वृद्धि के खिलाफ़ फ़िर क्या करेंगे भाई


लाइव आर्ट जैसे शहर में वान गॉग का बिंब :
सुंदर लेखन , यथार्थ का प्रतिबिंब


श्रेष्ठ होने का अहम :
खा जाए यही भ्रम


एक ट्विट्टर टाईम लाईन :
भेरी रोचक , भेरी भेरी फ़ाईन


कौन गुजरा था अभी :
वही जो गया था पहले कभी


बीजेपी वालों को कुछ समझ नहीं आ रहा :
अमां तो कांग्रेस वालों को ही कौन है समझा रहा


कविता:प्रयास करो तो ऐसा :
बिल्कुल नेक , यहां किया है जैसा


महंगे पेट्रोल के लिए थैंक्यू :
गोरमेंट कहेगी सेम टू सेम यू


तभी पढें जब आपके पास प्रमाण पत्र हो :
अमां पोस्ट है कि संसद सत्र हो 



खेल नहीं साजिश है आईपीएल :
आज तो निपट लिए , अब देखेंगे कल


एक बार फ़िर मौसम ने ली अंगडाई :
हाय हाय , इहां तो पसीना छूट रहा है भाई 



बढे रेट पेट्रोल के नीलकंठ पी जायं :
लेकिन इत्ते सारे हाय नीलकंठ हम कहां से लायं 



वैष्णो देवी यात्रा ......एक संस्मरण :
सुंदर पोस्ट , अदभुत चित्रण


सरलमना तिवारी का मनचला खून :
इहे खबर से गर्माया रहा मई और जून



गूगल की एक अनजानी पर उपयोगी सुविधा
यहीं पहुंच कर पूछिए जो हो मन में दुविधा 



यह पश्चिमी हिमालय कहां है :
बिल्कुल न बताएं , बताना मना है 



विकलांगता के प्रति हिंदी सिनेमा का रवैया :
जाके खुद देखिए , कैसा है भईया


किस्मत हाथों से गढते हैं ...हाथों की लकीरों से नहीं :
देश चलता है मजदूरों से , मुट्ठी भर अमीरों से नहीं ,


अदब के लठैत :
जैसे विषधर करैत


यात्रा संस्मरण : हरिद्वार ने मन मोह लिया :
इसीलिए तो हमने आपकी पोस्ट को टोह लिया


बाप के खून का प्यासा :
बिटवा ने बना दिया तमाशा


दाग अच्छे हैं :
अगर कच्चे हैं


घास और घसियारा :
दीपक और अंधियारा


भग्नावशेष :
पोस्ट है विशेष


वो गांव कहां है :
यादों में बयां है 


दर्द में डूबी उसकी कथा :
हाय सुना  दी ,ये किसकी व्यथा


ये क्या हो रहा है बाबा
सब खोल के बैठे अपना ढाबा


कौडी के मोल :
पोस्ट अनमोल


दुर्योधन : शिखंडी की आड में :
चढा दिए कितने बेरी के झाड में



केकेआर की जीत में तेरा क्या है कोलकाता :
हां यही बात कोई नहीं बतलाता



महानगरों में बढते तलाक :
एक झटके से रिश्ते हलाक


हर शब्द में असर होता है :
देर से सही , मगर होता है 



ब- से बडा , ब - से -बदतमीज ,
क- से कपडा , क -से- कमीज



पूनम पांडे का न्यूड सपोर्ट
घिना के रख दिहिस टोटल इस्पोर्ट 



साइंस से झगडा है , दुश्मनी नहीं
हाय आर्टस वालों से लेकिन कभी बनी नहीं 



शरीर को ज़हर भरा बर्तन न बनाएं
संडे के संडे पोलियो ड्राप्स पिलाएं 



कहने वाले तो कहते हैं
लिखने वाले लिखते हैं 


हाय -तिवाडी का खून निकाल लिया ,
काहे नय उसको कुकर में उबाल दिया 


अच्छा जी , अब बहुत दौड ली रेल , अब रेल को दीजीए विश्राम , सबको अपनी राम राम

सोमवार, 28 मई 2012

सिंह या शिखंडी.... या फ़िर जस्ट रोबोट.... ब्लॉग बुलेटिन

कार्टून साभार सतीश आचार्य 
भईये अपने पिरधानमंत्री हैं के.... सिंह या शिखंडी.... या फ़िर जस्ट रोबोट.... मजाक नय कर रिया हूं भाई... आज कल पूरा इंडीया यही क्वेस्चन पूछ रिया है.... वाकई यह बात हमारे हवलदार नें कहीं... हवलदार अरे अपना वाचमैन.... हम उसको पूछे अबे तुमको क्या दिक्कत है तो बोला साहब करेला से केला और मिट्टी तेल से पेट्रोल... सब में तो आग लगी है। फ़िर... ना जीनें को होए ना मरने को....    हमारा हवलदार आगे जो बोला वो सुनिए... 

सब्ज़ी का शौकीन है, सो एक आलू, एक प्याज़, एक टमाटर और चार फ़ली मटर...  फ़ल का शौकीन है सो एक सन्तरा भी ले आया...  (बारह रुपये में और क्या लाता बेचारा)

हमनें पूछा भाई हवलदार आज का डिनर मीनू क्या है तो बोला शाब आज तो शाही है, रोटी तरकारी और दाल भी.... पूरे छब्बीस रुपये का है आज तो... हम भी चुटकी लेने को कह दिए भाई अब तो सरकार तुमसे भी टैक्स वसूल करेगी....  वह बोला मालिक वसूल तो करिए रही है, एक रोटी बनानें के लिए आटा तो लाएंगे ही... उसपे टैक्स, चावल पर टैक्स... एक पारले जी बिस्कुट ले लो उसपे भी टैक्स.... अब भाई हवलदार की महीने की तनख्वाह कोई पांच हज़ार है और उतनें में उसे तीन प्राणी पालनें हैं.....  

हवलदार से मिलनें के बाद ऊपर आया और बुलेटिन लिखनें बैठा, देखा समाचार पर टीम अन्ना का विवादित बयान, PM को कहा शिखंडी.... फ़िर हवलदार की बात याद आई.... सिंह या शिखंडी.... या फ़िर जस्ट रोबोट.... सच में आज कल तो हालत ऐसी है, जिसमें कोई खुश नहीं है और फ़िर हवलदार जैसे लोगों का क्या कहना.... चलिए तो आप ही निर्णय लीजिए की अपनें प्रधानमंत्री क्या हैं, सिंह या शिखंडी.... या फ़िर जस्ट रोबोट...  तब तक हम अपनें बुलेटिन को आगे बढाते हैं.... 

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ब्लोगिंग के उत्थान में शानदार भूमिका है फेसबुक की   (Ratan singh shekhawat) at ज्ञान दर्पण

फेसबुक पर अक्सर हिंदी ब्लॉग लेखकों की टिप्पणियाँ पढ़ने को मिली कि- "फेसबुक ब्लोगिंग के लिए खतरा है|" दरअसल ज्यादातर ब्लॉग लेखकों द्वारा फेसबुक पर ज्यादा समय देने से ब्लॉगस् पर लेख आने की फ्रिक्वेंसी कम हुई है और यही वजह ब्लॉग लेखकों की चिंता का कारण है जिसे वे अक्सर फेसबुक पर जाहिर भी करते रहते है| पर मैं नहीं मानता कि ब्लोगिंग को फेसबुक से कोई खतरा है| बल्कि मेरा अनुभव तो यह कहता है कि ब्लोगिंग के उत्थान में फेसबुक एक शानदार एग्रीगेटर की भूमिका निभा रही है बस ब्लॉग लेखक को फेसबुक की इस एग्रीगेटर वाली भूमिका का लाभ उठाना आना चाहिए| फेसबुक द्वारा निभाई जाने वाली इस भूमिका को समझने ... more » 
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कहते हैं घर मनुष्यों से बनता है , चार दीवारों से नहीं । लेकिन चार दीवारों की भी अहमियत होती है । क्योंकि जहाँ मनुष्य पैदा होता है , पला बड़ा होता है , उसके साथ पुरानी यादें हमेशा जुडी रहती हैं । नए बने सात किलोमीटर लम्बे फ्लाई ओवर पर 8० की स्पीड से गाड़ी चलाते हुए एक स्थान ऐसा आता जहाँ पहुँचकर मन अतीत में हिलोरें मारने लगता । उस स्थान पर एकओर वो स्कूल था जहाँ से हायर सेकंडरी की शिक्षा प्राप्त की थी । बायीं ओर वो झूले वाला पुल जिससे नाला क्रॉस कर थोड़ा आगे दो कमरे वाला सरकारी क्वार्टर जहाँ जिंदगी के छै साल बिताकर बचपन से ज़वानी का पुल पार किया । नाले वाला पुल पार करते हुए अक्सर पुल ... more » 
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 सफर का आनंद माता के दरबार जाने की इच्‍छा पि‍छले कई महीनों से मन में थी। सोचा,‍ इस बार बच्‍चों की गर्मी की छ़ुट़टि‍यां जैसे ही शुरू होंगी, नि‍कल पड़ेंगे। सो सीटें आरक्षि‍त करवा कर हम नि‍श्‍चिंत हो गए क्‍योंकि‍ छुट़टि‍यों में काफी गहमागहमी होती है ट्रेन में। यात्रा में हमारे परि‍वार के साथ मेरे माता-पि‍ता भी थे। मतलब मेरे पति, दोनों बेटे,मेरे माता-पि‍ता और मैं....कुल छह लोग। 11 मई को हमें जम्‍मूतवी से जाना था और वापसी 17 मई को राजधानी से थी। बच्‍चों में यात्रा को ले बड़ा उत्‍साह व रोमांच था। पूरे पैकिंग के दौरान ये ले चलूं....वो ले चलूं कि‍ गुहार लगती रही। बड़ा बेटा अमि‍त्‍युश चेस ... more »
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*माधव की Summer vacations चल रही है . इन दिनों दिल्ली में दिन में सूरज आग बरसा रहा है सो दिन में कही जाने का सवाल ही नहीं है . इसलिए जनाब दिन में अच्छी नींद लेते है . अब दिन में नींद लेने के बाद , रात में जल्दी नींद कहा आती है , फिर क्या ,रात बारह बजे समर होम वर्क करने लगे . होम वर्क में मन ऐसा रमा कि उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे , फिर जबरदस्ती लाईट आफ की गयी तब जाकर जनाब सोये .* 
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अंधविश्वास की तिजारत और राजनीति   Suman at लो क सं घ र्ष !

सनल इडामारूकू जहाँ एक ओर समेले इडामरक्कू नामक तार्कितावादी, “धार्मिक विश्वासों को चोट पहॅुचाने“ के आरोप में कानूनी कार्यवाही का सामना कर रहे हंै वहीं दूसरी ओर, निर्मल बाबा पर धोखाधड़ी करने के आरोप हैं। निर्मल बाबा का दावा है कि वे दैवीय शक्तियों के स्वामी हैं। उनके कार्यक्रम 40 से अधिक टी.व्ही. चैनलों पर प्रसारित होते हैं और उनकी “कृपा“ प्राप्त करने के लिए बाकायदा पैसा भी चुकाया जाता है। निर्मल बाबा के पास आपकी और मेरी हर समस्या का दैवीय हल मौजूद है। एक स्थानीय अदालत ने पुलिस को निर्मल बाबा के विरूद्ध धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। यद्यपि सेमेल इडामरक्कू और निर्मल बाब... more »

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सोनाक्षी की दूसरी फिल्‍म और जन्‍मदिवस  Kulwant Happy "Unique Man" at युवा सोच युवा खयालात


सोनाक्षी सिन्‍हा, एक ऐसा नाम है। एक ऐसा चेहरा है। जो आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। दबंग से पहले भले ही मायानगरी में होने वाली पार्टी में लोग उसको शॉटगन की बेटी के रूप में पहचानते हो, मिलते हो। मगर आज उसकी अपनी एक पहचान बन चुकी है। पहली ही फिल्‍म सुपर डुपर हिट और नवोदित अभिनेत्री पुरस्‍कार भी झोली में आन गिरा। ऐसा नहीं कि ऐसा केवल सोनाक्षी के साथ ही हुआ, पहले भी बहुत सी अभिनेत्रियों के साथ हुआ। मगर सोनाक्षी की आंखों में जो कशिश है, चेहरे पर जो नूर है, वो उसको बिल्‍कुल अलग करता है। जहां दो जून को सोनाक्षी पच्‍चीस साल की हो जाएगीं, वहीं उनकी दूसरी फिल्‍म राउड़ी राठौड़ उनके जन्‍मदिवस ... more »



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ज़िन्दगी की धूप मे   डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"(Dr.Rajendra Tela,Nirantar)" at "निरंतर" की कलम से..... 

ज़िन्दगी की धूप में बाल तो सफ़ेद नहीं हुए दिल सफ़ेद हो गया सारा खून ज़माना पी गया छल कपट के सामने कमज़ोर पड गया मोहब्बत से जीने वाला घबरा गया पर उम्मीद अभी बाकी है सांस भी चल रही हैं जब तक रहेगी जान में जान हार नहीं मानूंगा मोहब्बत के खातिर लड़ता रहूँगा.. 


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गर्मी पे चढा शबाब , और आदमी भुन के हुआ कबाब .   अजय कुमार झा at खबरों की खबर 

* गर्मी की मार से हो सकती है आपकी सेहत खराब , सेहत खराब , अजी यहां तो दिमाग का दही हो गया जनाब , (गर्मी पे चढा शबाब , और आदमी भुन के हुआ कबाब ) पीएम पर भ्रष्टाचार के आरोप गलत हैं , ऐसा कह रही है सरकार , अपने अपने हाथ उठाओ , इसपे किसको किसको है भरोसा यार , (अमां हाथ उठाने को कहे हैं हो , आप लोग तो जुत्ता उठाने लगे , भगिहे रे सरकार ) कम होगी पेट्रोल की आग , पेश होगा दिल्ली का बजट आज , हां हां साले जरूरे होगा , दिल्ली में तो चल रहा है जैसे राजा हरीश्चंद्र का राज , (अबे हट , हुर्रर्रर्रर्र ..ई थेथरलोजी से जनता को लेमनचूस चुसा रहे हो बेट्टा , आवे दो अबके चुनाव ) कडप्पा के सांसद जगनमोहन... more »

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जारी है बिहार में व्यवसायियों की ह्त्या  Rajneesh K Jha at आर्यावर्त

बिहार के गोपालंगज जिले में शनिवार को हुए एक शराब व्यवसायी की हत्या के मामले को पुलिस अभी सुलझा भी नहीं पाई थी कि रविवार की रात जिले के थावे थाना क्षेत्र में एक शराब की दुकान के सेल्समैन की अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार थावे रेलवे स्टेशन के सामने जगदीश प्रसाद की शराब दुकान में सुनील कुमार सोनी काम करता था। रविवार की रात भी वह काम पर था, इसी दौरान अज्ञात अपराधियों ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने सोमवार की सुबह उसका शव दुकान से बरामद किया। उसके सीने में गोली मारी गई थी। सुनील नगर थाना के पुराना चौक मुहल्ले का निवासी था। पुलिस के एक अधिकारी के अन... more »

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चाय, यादें, रोटी, मैं और बुज़ुर्ग...  दिलीप at दिल की कलम से...

चाय... ------------ अदरक की चाय... तुलसी की चाय... काली मिर्च की चाय... मसाले की चाय... इलायची की चाय... इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आता... अब तुम्हारे हाथ की चाय जो नहीं मिलती... ----------------------------------------------- यादें... ------------ कल रात से बारिश हो रही है... कागज़ी लॉन में भूल गया था उन्हें... अभी उठा कर लाया हूँ... अंदर हेंगर मे टाँग दिया हैं... पर अंदर भी सीलन ही है... वक़्त लगेगा सूखने में... मोटे कपड़े की जो हैं... कभी सर्द रातों मे ओढ़ लिया करता था उन्हे... गर्माहट के लिए... अब पुरानी हो चली है.. सोचता हूँ अब जब ठंड हो... तो उन्हे जलाकर ही ताप लूँ.. ------------... more »

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मेहनत का आज सिला मिल ही गया  वन्दना at ज़ख्म…जो फूलों ने दिये 

आज मेरे बेटे ईशान का सी बी एस सी बारहवीं का रिज़ल्ट आ गया उसके 94% मार्क्स आये हैं और पी सी एम 96% है ।इतने वक्त की मेहनत का आज सिला मिल ही गया और अब उसका उसके मनपसन्द सब्जैक्ट के साथ इंजीनियरिंग मे और एडमीशन हो जाये तो जीवन सफ़ल है । बस आप सबकी दुआओं और आशीर्वाद की जरूरत है ।

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राष्ट्र भक्त वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन!   संगीता तोमर Sangeeta Tomar at सादर ब्लॉगस्ते! 

 
*(28 मई 1883 -26 फरवरी 1966)* *तुजसांठी मरण ते जनन,तुजवीण जनन ते मरण!* *हे मातृभूमि!तेरे लिए मरना ही जीना है और तुझे भूल कर जीना ही मरना है!* *जिस प्रकार एक भारतीय नाटक के सभी पात्र-मृत और जीवित भी,एक समय अंत में मिलते हैं,उसी तरह इस संघर्ष नाटक के हम सभी असंख्य पात्र भी कभी इतिहास के रंगमंच पर अवश्य मिलेंगे.तब तक के लिए मित्रो!विदा!विदा!!मेरी लाश कहीं भी गिरे,चाहे अंडमान की अंधेरी कालकोठरी में अथवा गंगा की पवित्र धारा में,वह हमारे संघर्ष को प्रगति ही देगी.युद्ध में लड़ना और गिर पड़ना भी एक प्रकार की विजय है. अत:प्यारे मित्रो! विदा!* *-स्वातंत्र्यवीर सावरकर *
 

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आशा है आप सभी को आज का बुलेटिन पसन्द आया होगा.... चलिए तो फ़िर एक छोटे से ब्रेक के बाद फ़िर मुलाकात होगी..... 

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-देव


रविवार, 27 मई 2012

101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है



हमने आपसे पिछले सप्ताह ही वादा किया था कि अबसे संडे के संडे आपको साप्ताहिक महाबुलेटिन की दुनिया में ले चलेंगे । एक ठो अईसन रैपिड राईड कि आप पूरे ब्लॉगजगत की खूबसूरत पोस्टों पर मजे में टहल के आ सकते हैं , देखिए एक्सप्रेस हाज़िर है ..ऑन राइट टाइम सर जी । यात्री गण अपनी सीट बेल्ट बांध लें और उडान भरने को तैयार हो जाएं
1.
बोली बनाम भाषा ऐंड माथापच्ची इन बिहारी
इन्सोम्निया...कितना रसिक सा शब्द है न? सुन कर ही लगता है कि इससे आशिकों का रिश्ता होगा...जन्मों पुराना. ट्रांसलेशन की अपनी हज़ार खूबियां हैं मगर मुझे हमेशा ट्रांसलेशन एक बेईमानी सा लगता है...अच्छा ट्रांसलेशन ऐसे होना चाहिए जैसे आत्मा एक शरीर के मर जाने के बाद दूसरे शरीर में चली जाती है. मैं अधिकतर अनुवादित चीज़ें नहीं पढ़ती हूँ...जानती हूँ कि ऐसे पागलपन का हासिल कुछ नहीं है...और कैसी विडंबना है कि मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म कैन्तोनीज (Cantonese)में बनी है...इन द मूड फॉर लव. ऐसा एक भी बार नहीं होता है कि इस फिल्म को देखते हुए मेरे मन में ये ख्याल न आये कि ट्रांसलेशन में कितना कुछ छूट गया होगा...बचते बचते भी इतनी खूबसूरती बरकरार रही है तो ओरिजिनल कितना ज्यादा खूबसूरत होगा.
मेरे अनुवाद को लेकर इस पूर्वाग्रह का एक कारण मेरी अपनी विचार प्रक्रिया है. मैं दो भाषाओं में सोचती हूँ...अंग्रेजी और हिंदी...ऐसा लगभग कभी नहीं होता कि एक भाषा में सोचे हुए को मेंटली दूसरे भाषा में कन्वर्ट कर रही हूँ. अभी तक का अनुभव है कि कहानियां, कविताएं और मन की उथल पुथल होती है तो शब्द हमेशा हिंदी के होते हैं और टेक्नीकल चीज़ें, विज्ञापन और सिनेमा से जुड़ी चीज़ों के बारे में सोचना अक्सर अंग्रेजी में होता है. इसके पीछे कारण ये है कि पूरी पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में हुयी है और फिर ऑफिस भी वैसे ही रहे जिनमें अधिकतर काम और कलीग्स के बीच बातें अंग्रेजी में होती रहीं. वैसे तो सभ्य भाषा का इस्तेमाल करती हूँ लेकिन अगर गुस्सा आया तो गालियाँ हमेशा हिंदी में देना पसंद करती हूँ.


2.
जर गया तेरा बंगला ! (पटना १२)
पिछले दिनों भारत आया तो बैरीकूल का फोन आया। हाल खबर की लेनदेन के बाद बोला - "भईया, गाँव आइये त पक्का से मिलते हैं।"
मैंने कहा -  "बीरेंदर,  देख लो गर्मी का दिन है इतनी दूर आना पड़ेगा तुम्हें। वैसे अगर समय मिला तो एक दिन के लिए पटना मैं ही आ जाऊंगा।"
"अरे नहीं भईया, आप आए हैं त हम मिलेंगे कईसे नहीं? मोटरसाइकिल हइए है... एक ठो दोस्त को पकरेंगे आ आजाएँगे। अब आप एतना दूर से आए हैं। कुछ ना कुछ पलान होगा आपका... त अब उसीमें हमसे मिलने कहाँ आईएगा"
"अरे नहीं बीरेंदर, हमें भी तुमसे मिलकर अच्छा लगता है। उसे भी प्लान में ही डाल लेंगे। वैसे प्लान तो कुछ खास है नहीं,  बस घर पर ही पड़े रहना है।"


3.

 


कार्टून :- तेल की कीमत PSU के लौंडे अपने आप बढ़ा लेते हैं


4.


मीना कुमारी ।
महज-बीन = महजबीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।

(courtesy-Google images)
नाम - महज-बीन = महजबीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।
जन्म - १ -अगस्त -१९३२.
दुखद निधन -३१ -मार्च -१९७२.
पिता का नाम - अली बक्षजी ।
(संगीत टीचर -हार्मोनियम प्लेयर-पारसी थियेटर-उर्दू शायर -संगीतकार फिल्म-`शाही लूटेरे`। )
माता का नाम - प्रभादेवी उर्फ़ इक़बाल बेग़म ।
( प्रभावतीदेवी, शादी से पहले `कामिनी` के नाम से स्टेज एक्ट्रेस -नर्तकी थीं । शादी के बाद मुस्लिम धर्म अंगिकार करके `इक़बाल बेग़म`` नाम रख लिया । कहते हैं की, उनकी माता `हेमसुंदरी` का विवाह `टैगोर परिवार ` में हुआ था । )
दो छोटी बहनें - नाम - ख़ूरशिद और मधु ।

5.
 
ब्लॉग पहेली -२७ का परिणाम

                   ब्लॉग  पहेली  २७  में  पूछे  गए सवाल के जवाब में दो  उत्तर प्राप्त हुए हैं .सर्वप्रथम रविकर जी का उत्तर प्राप्त हुआ ...जो बिलकुल  सही था  .आशा  जी ने भी ''विख्यात '' को छोड़कर अन्य ब्लोग्स  के नाम सही पहचाने .सही उत्तर इस प्रकार है-
ब्लॉग मौहल्ला
नुक्कड़
चर्चा मंच
नयी पुरानी हलचल
दुनिया रंग रंगीली
विख्यात मेरी बातें
आधा सच
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रविकर जी को विजेता बनने पर हार्दिक शुभकामनायें
Trophy_winner : Gold trophy
winner
blog paheli 27
shri dinesh gupta
''ravikar ''

6.
सद्भावना के वटवृक्ष रोशन कोटवी -शकूर अनवर
धन दौलत गर पास नहीं, किरदार सुदामा जैसा रख
तेरा चाहने वाला कोई मोहन भी हो सकता है   - रोशन
अभी पिछली 1 जुलाई 2011 को हमारे नगर के वरिष्ठ एवं उस्ताद शायद रोशन कोटवी ने अपने निवास पर जीवन के 83 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष में प्रो. एहतेशाम अख्तर की अध्यक्षता में एक वृहद् काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया। रोशन कोटवी साहब ऐसी काव्य-गोष्ठियों का आयोजन पिछले 3-4 वर्षों से निरन्तर कर रहे थे। काव्य-गोष्ठी में कोटा नगर के कवि-शायरों के अलावा कैथून, बूंदी, इटावा, भवानीमंडी एवं अजमेर से भी साहित्यिकि मित्रों ने शिरकत करके इस कार्यक्रम को सफल बनाया। इस कामयाब काव्य-गोष्ठी की साहित्यिक क्षेत्रों में काफी चर्चा रही।
7.
हाय राम, कैसे होगा ब्लॉगिंग का उत्थान...खुशदीप​​


आजकल  ब्लॉगिंग  में दूसरों को उपदेश  देने वालों की बाढ़  सी आ गई  है...कोई  मर्यादा का पाठ  पढ़ा रहा है...कोई टिप्पणी विनिमय का शिष्टाचार  सिखा रहा है...कोई  भाषा पर सवाल  कर रहा है...कोई  इसी फिक्र में ही कांटा होता जा रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग का उत्थान  कैसे होगा...कई  तो ब्लॉगिंग  ही इसीलिए  कर रहे हैं कि किसी पोस्ट पर कुछ  ऐसा मिले कि पलक झपकते ही उसे​ लताड़ते हुए  पोस्ट तान दी जाए...हिंदी ब्लॉगिंग की यही सबसे बड़ी खामी है कि यहां अपने लिखने पर  ध्यान  देने की जगह  इस  बात  में ज्यादातर  घुले जा रहे हैं कि दूसरे क्या लिख  रहे हैं...​
8.
बी.जे.पी. की श्वासनली अवरूद्ध है

भारत में राजनैति‍क पार्टि‍यां लीडरों के व्‍यक्‍ति‍गत charisma के कारण ही चलती आई हैं. जनता पार्टी, कॉंग्रेस के वि‍रूद्ध जन्‍मी पार्टी थी जो कालांतर में भारतीय जनता पार्टी में रूपांतरि‍त होकर अटल बि‍हारी बाजपेयी के नेतृत्‍व में स्‍थायि‍त्‍व ले पाई. लेकि‍न बाजपेयी की पारी के बाद अडवाणी वहीं से शुरू नहीं कर पाए.
बहुतायत में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों के इस पार्टी में आने से, इसमें अपेक्षाकृत अनुशासन बना रहता था. कि‍न्‍तु पि‍छले कुछ समय से पार्टी के भीतर नेतृत्‍व के संघर्ष की ख़बरें आती ही रहती हैं. इन ख़बरों का खंडन भी नि‍यम से कि‍या ही जाता रहता है, पर मुश्‍कि‍ल लगता है इस बात पर भरोसा कर पाना कि‍ इस धुएं की बार बार उठने वाली ख़बर सही न हो.

9.
खुलासाःटूथ पेस्ट और टूथ पाउडर में मिलाया जा रहा है निकोटीन
सिगरेट, तंबाकू और गुटखा से परहेज कर अगर आप सोच रहे हैं कि निकोटीन के दुष्प्रभाव से आप मुक्त हैं तो आप गलत हैं। दरअसल, बाजार में ऐसे पदार्थ धड़ल्ले से बिक रहे हैं, जिनमें छोरी-छुपे निकोटीन मिलाया जा रहा है। हैरत कि बात यह है कि टूथ पेस्ट और टूथ पाउडर जैसी रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं भी इस गोरखधंधा की चपेट में हैं।
यह खुलासा दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंस एण्ड रिसर्च (डिप्सार) के एक अध्ययन में हुआ है। चिंताजनक बात यह है कि डिप्सार ने इसी तरह का एक सर्वे पहले भी किया था और विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली ड्रग्स कंट्रोल विभाग और अन्य स्वास्थ्य एजेंसियों को सौंपी थी, पर दोषी कंपनियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
बीते एक वर्ष से डिप्सार दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग इलाकों में बिक रहे उत्पादों की जांच कर रही थी। इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल प्रो. एसएस अग्रवाल ने भास्कर को बताया कि दिल्ली-एनसीआर में बिक रहे टूथ पाउडर में निकोटीन की मात्रा पाई गई। जिन उत्पादों में निकोटीन मिले होने की बात सामने आई है, वे सभी राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट हैं। उन्होंने चिता व्यक्त करते हुए कहा कि बीते वर्ष भी संस्थान ने इसी तरह का अध्ययन किया था।
10.
भारतीय काव्यशास्त्र – 114
भारतीय काव्यशास्त्र – 114
आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में यह चर्चा की गई थी कि वक्ता के वैशिष्ट्य के कारण अप्रतीत्व या कष्टार्थत्व आदि काव्यदोष दोष नहीं होते। इस अंक में चर्चा की जाएगी कि बोद्धा (श्रोता), व्यंग्य, वाच्य और प्रकरण आदि के वैशिष्ट्य के कारण भी तथाकथित काव्यदोष दोष न होकर या तो काव्य के गुण हो जाते हैं या न तो गुण होते हैं और न ही दोष।
यदि श्रोता (बोद्धा) वैयाकरण हो, तो भी श्रुतिकटु दोष काव्यदोष न होकर गुण हो जाता है। जैसे-

यदा    त्वामहमद्राक्षं    पदविद्याविशारदम्।
उपाध्यायं तदाSस्मार्षं समस्प्राक्षं च सम्मदम्।।

11.
simple mechanism of a complex system
ड्राइविंग लाईसेंस बनवाना था और समस्या ये सामने आ रही थी कि मेरे पास छुट्टी की कमी थी| अथोरिटी का हाल तो मालूम ही था, बिना किसी एजेंट के जाने का मतलब था पूरा दिन खराब करना| मेरा भारत महान की एक खास बात ये है कि यहाँ हर काम के लिए मध्यस्थ उपलब्ध रहते हैं, यत्र तत्र सर्वत्र| एक ऐसे ही बंदे का पता चला तो उससे इस बारे में बात की| पैसों की बात तय हो गई, साथ ही यह बात कि एक घंटे में फ्री कर दिया जाऊँगा,  जिसमें लिखित परीक्षा, फोटो, फिंगर प्रिंट्स वगैरह सब काम निबट जायेंगे| सरकारी फीस से जितने ज्यादा रूपये देने पड़  रहे थे, एक छुट्टी बचाने और बिना किसी सिफारिश के अथोरिटी में जाने पर पेश आने वाली जिल्लतों के बदले ये अतिरिक्त खर्चा ठीक ही लगा|

12.
नानी के नाम चिट्ठी
मेरी प्यारी नानी,
कई दिनों से सोच रही हूं कि आपको लिखूं चिट्ठी। कुछ वैसी ही निर्दोष, जैसी बचपन में लिखा करती थी। जब लिखा करती थी कि सब कुशलमंगल है, वाकई वैसी होती थी ज़िन्दगी, या शायद उतना ही समझ आता था। हालांकि आपके कुशल हो जाने की कामना की तीव्रता अब भी कम नहीं हुई।
नानी, आपको वैसे ही याद करती हूं इन दिनों जैसे पैरों के तलवे में बेसबब निकल आया कोई ज़ख़्म याद आया करता है, एक अविराम टीस की तरह, जिसके होने से याद आता रहते हों वो तलवे जिनपर शरीर का बोझ होता है और जिनपर वक़्त-वक़्त पर मरहम लगाना ज़रूरी होता है। वरना तो अपनी हर प्रिय और सबसे आवश्यक चीज़ को ग्रान्टेड ले लेने की बुरी बीमारी होती है हम सबको।

13.
यह संकट कोई दो-चार दिनों, महीनों या वर्षों का नहीं है.
यह एक अजीब विडम्बना है कि ठीक जिस वक़्त मैं यह लेख लिख रहा हूँ एक कारपोरेट निजी चैनल का समाचारवाचक चीख-चीख कर पेट्रोल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि की है और उस पर प्रतिक्रिया देते हुए सत्तापक्ष के नेता कह रहे हैं कि जनता की क्रयशक्ति बढ़ गयी है और वह इसे आराम से झेल सकती है, असल में यह वृद्धि जनता के हित में की गयी है तो मुख्य विरोधी दल के नेता सरकार से अपने खर्च कम करने के कुछ हास्यास्पद सुझाव दे रहे थे – जो बात कोई नहीं कह रहा है वह यह कि सरकार कारपोरेटों को दी जाने वाली सब्सीडीयाँ कम करे. २०१०-२०११ के बजट में कार्पोरेट्स को दी गयी 4,18,095 करोड़ रुपयों की सब्सीडी उस विशाल धनराशि का बस एक छोटा सा हिस्सा है जो हर साल कार्पोरेट्स के हित में खर्च करती है. आज सत्ताधारी वर्ग की सभी पार्टियाँ अपनी दूसरी नीतियों में भले कितनी भी अलग दिखाई दें, आर्थिक नीतियों के मामले में सबके बीच एक आम सहमति का माहौल है. नब्बे के दशक के आरम्भ में देश-दुनिया की सारी मुसीबतों के इकलौते रामबाण की तरह जोर-शोर से शुरू की गयीं उदारीकरण की नीतियाँ उसके बाद की सभी सरकारों ने थोड़े-बहुत ऊपरी फेरबदल के साथ लगातार जारी रखीं, विकास दरों के शोर में समय-समय पर यह तर्क सभी सरकारों ने दिया कि कार्पोरेट्स की आय में हुई वृद्धि धीरे-धीरे रिस कर नीचे तक पहुंचेगी और लगातार उनके कारोबार को आगे बढ़ाने वाली नीतियों को इस देश के आमजन की कीमत पर आगे बढ़ाया गया. एक दशक होते-होते इन नीतियों के परिणाम भी सामने आने लगे और 2008-2009 में पूरी दुनिया के साथ भारत भी आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया. उस समय भी सच को स्वीकार कर नीतियों पर पुनर्विचार करने की जगह सारा जोर पहले तो मंदी को मिथक साबित करने पर और फिर यह साबित करने पर दिया गया कि भारत पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. नतीजा यह कि देश की आर्थिक हालत सुधारने  की जगह और बिगड़ती गयी. भारत की हालिया आर्थिक स्थिति का अंदाजा अर्थशास्त्री टेलर कोवेन के उस ट्वीट से लगाया जा सकता है जिसमें वह कहती हैं कि ‘इन दिनों की सबसे ज़रूरत से कम कही गयी ज़रूरी कहानी है भारत की मौजूदा आर्थिक गिरावट की कहानी’, और इसके पुख्ता आधार हैं.

14.
Glass house - Casa di vetro - काँच घर
Glass house, New York
Glass house, New York
Glass house, New York

15.
वो मेरी चुप्पियां भी सुनता था...
मैंने सब जुर्म याद रखे हैं...
मैंने सब कटघरे सजाए हैं...
कोई तो आए, सज़ा दे मुझको...
लोग कहते हैं अजब पूनम है...
चांद सूजा हुआ-सा लगता है...
तुमने फिर नींद की गोली ली क्या?
मैंने दुनिया से कुछ कहा भी नहीं
जाने क्या उसने सुना, रुठ गया...
वो मेरी चुप्पियां भी सुनता था...
देखो ना रिस रहा है आंखो से
एक रिश्ता कोई हौले-हौले
कोई 'चश्मा' भी नहीं आखों में !!

16.
हम जहां पहुंचे कामयाब आये - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की आपबीती – ४


(पिछली कड़ी से आगे)
मैं मास्को के बाद लंदन चला गया और लंदन में दो वर्ष तक रहा. मैं लंदन से लाहौर आने के बजाय कराची लौट आया. कराची में मैं मिस्टर महमूद हारून के निवास स्थान पर ठहरा. उनकी बहन जो डाक्टर थीं और मेरी मित्रा थीं, उन्होंने मुझे लिखा कि श्रीमाती हारून बीमार हैं और आपको देखना और मिलना चाहती हैं. मेरे आने पर श्रीमती हारून ने मुझे बताया कि उनका जो फ़लाही फ़ाउंडेशन है उसके अधीन स्कूल, अस्पताल और अनाथालय चल रहा है. उनके लड़के के पास फ़ाउंडेशन चलाने के लिए समय नहीं है क्योंकि वह व्यापार तथा राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहे हैं. अच्छा होगा कि फ़ाउंडेशन की व्यवस्था मैं संभाल लूं. मैंने फ़ाउंडेशन के स्थान पर उसकी गतिविधियों का निरीक्षण किया तो देखा कि वह गंदी बस्ती का इलाक़ा था, जहां मछुआरे, ऊंट वाले, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति रहा करते थे.


17.

टेनिसन, तुम सचमुच महान हो!

कनक तिवारी

नरेंद्र मोदी
विश्व विख्यात अंग्रेज़ कवि अल्फ्रेड लॉर्ड टेनिसन ने ये अमर पंक्तियां लिखी हैं-The old order changeth yielding place to new and god fulfills himself in many ways lest one good custom may corrupt the world यानी नई परंपराओं के लिए पुरानी परंपराएं जगह खाली करती हैं कि कहीं अच्छी प्रथाएं भी नए संसार को भ्रष्ट नहीं कर दें.
कवि जब दर्शनशास्त्र को सूत्रों में व्यक्त करता है तो उससे ज़्यादा संक्षिप्त और तीखा कथन और कहीं नहीं होता. भारत में तो बकौल लोहिया, दर्शन शास्त्र प्राचीन भाषा संस्कृत में गीतों बल्कि संगीत में ही अभिव्यक्त किया गया है. इस लिहाज़ से शायद भारत संसार का अकेला या पहला देश है. बहरहाल विक्टोरियाई युग के कवि टेनिसन की उक्त कालजयी पंक्तियां इक्कीसवीं सदी के राजनीति विज्ञान को भी बेहतर चरितार्थ करती हैं.


18.
उन दिनों ...!
अमूमन हम ऐसी किसी भी बात पर असहज हो उठते हैं जो , हमारी अपनी परवरिश के अनुकूल नहीं होती ! इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि चिंतन और समझ के स्तर पर हम स्वयं को , स्वनिर्धारित खांचे से बाहर जाकर दूसरी परवरिशों के सत्य को स्वीकार करने की अनुमति तक नहीं देते  !  बौद्धिक परिमार्जन के द्वार बंद रखने की इस कवायद में , हद दर्जे की सनक , असहिष्णुता और पूर्वाग्रहों से गहन मैत्री के भाव लिए हुए हम , अपने कूप से बाहर के संसार और उसके आलोक सह अन्धकार के प्रति केवल नकार के सुर उचारते हुए जीवन गुज़ार देते हैं  !  इसे हमारी परसोना का भयंकरतम पक्ष माना जाये कि सारी की सारी वसुंधरा के कुटुंब होने का आदर्श वाक्य कह चुकने के फ़ौरन बाद हमारी अपनी वसुंधरा हमारी अपनी परवरिश के दायरे में सिमट कर रह जाती है , फिर उसमें किसी दूसरे विचार / किसी दूसरी परवरिश के समाने की कोई गुंजायश नहीं होती 


19.

आज भी गुज़रता हूँ कभी कभी...

Author: दिलीप /
आज भी गुज़रता हूँ कभी कभी, तुम्हारी यादों से...
आगे जाकर बड़ी संकरी और भूल भुलैय्या सी हो जाती हैं...
जाओ तो बाहर आना मुश्किल हो जाता है...
इसलिए समझदारी का धागा बाँध कर आता हूँ....
देखता हूँ वो गेट अभी भी वैसे ही बाहें पसारे खड़ा है...
मुझे देखता है तो इक धीमी सी आवाज़ करता है...
इंतेज़ार की ठंड मे हड्डियाँ जकड गयी हैं उसकी.


20.
जाने कैसी बात हुई
जाने कैसी बात हुई
उनसे मुलाकात हुई
आँख खुली तो चादनी भरी
पूनम वाली रात हुई ।
सोचा था न कभी जीवन में
ऐसा भी क्षण आयेगा,
नियमबध्द मेरे जीवन में
जैसे वारदात हुई .।


21.
भगवत रावत



क़रीब डेढ़ साल पहले-
शाम फ़ोन बजता है. उस तरफ़ एक कांपती हुई, लेकिन ओजस्‍वी बुज़ुर्ग आवाज़ है. उलाहने का आरोह है.
'तुम्‍हें आने की फ़ुरसत नहीं मिलती?'
'दादा, क़सम से. बहुत उलझा हुआ हूं. नहीं निकल पाया.'
'अभी कहां हो?'
'दफ़्तर में.'
'तुम नहीं आ रहे, तो हम ही दस मिनट में पहुंच रहे हैं. सीढ़ी नहीं चढ़ पाएंगे, इसलिए तुम नीचे ही आ जाना.'
क़रीब पंद्रह मिनट बाद दफ़्तर के बाहर सड़क पर हम मिलते हैं. यह भगवत रावत थे. हिंदी के वरिष्‍ठ कवि. बलवान कवि. हम दो घंटे से ज़्यादा बाहर चाय की भीड़-भरी गुमटी पर बैठे रहे. दुनिया-जहान की बातें करते रहे. वह सन् 80 का भोपाल और सत्‍तर का हैदराबाद बताते रहे. उनकी बातें, एक से जुड़ती एक.  किसी ने स्‍वेटर में ऊन की एक गांठ खोल दी हो.
उनके ठहाके. बीच-बीच में दर्द की शिकन. बुज़ुर्गियत लाड़ और शिकायतों का युग्‍म है. पुराने से शिकायत होती है. नये से लाड़ होता है. जो नहीं हो सका, उसकी शिकायत होती है. जो होना संभव दिख रहा है, उसके लिए लाड़ होता है.


22.
निर्मल बाबा ही नहीं ...हम और हमारा समाज भी पाखंडी ही है !!!
  • आशीष देवराड़ी

ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकीकरण के इस दौर में अभी हमारे अंधविश्वासों के लिए काफी स्पेस मौजूद है | क्या पढ़े लिखे और क्या गंवार, दोनों ही अंधविश्वास के जाल में जकड़े हुए है | एक के लिए पण्डित मंदिर में उपलब्धय है तो दूसरे के लिए उसके मोबाइल पर ,एक के लिए तीर्थ -दर्शन है तो दूसरे के लिए वर्चुअल-दर्शन ,एक के भगवान खुली छत के नीचे है जो दूसरे के केमरों की सुरक्षा के बीच वातानुकूलित कमरों में बंद | बिन पढ़े लिखो कि बात तो समझ आती है जो अज्ञानता और मजबूरीवश इन अंधविश्वासों में उलझे हुए है परन्तु यदि तथाकथित आधुनिक पढ़े-लिखे लोग भी  इन अंधविश्वासों से पार ना पा सके तो ये उनकी शिक्षा (या कहे हमारी शिक्षा व्यवस्था ) और आधुनिकता पर बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता है |ये बात रेखांकित कि जानी चाहिए कि वर्तमान सन्दर्भ में  पढ़ने-लिख लेने का मतलब अंधविश्वासों से मुक्ति कतई नहीं है |पढ़े लिखो में अपने अन्धविश्वास पलते है और ये अन्धविश्वास आये दिन हमें अपने आस-पास दिखलाई पड़ते है|


23.
हँसी बहुत अनमोल
कर प्रयत्न राखें सभी, मन को सदा प्रसन्न,
जो उदास रहते वही, सबसे अधिक विपन्न।



गहन निराशा मौत से, अधिक है ख़तरनाक,
धीरे-धीरे जि़ंदगी, कर देती है ख़ाक।


वाद-विवाद न कीजिए, कबहूँ मूरख संग,
सुनने वाला ये कहे, दोनों के इक ढंग।

जो जलते हैं अन्य से, अपना करते घात,
अपने मन को भूनकर, खुद ही खाए जात।


24.
लघु कथा :- महंगाई

पापा कितनी महंगाई है , और देखो , सरकारी अफसरों का महंगाई भत्ता बढ़ गया है , पापा कल मुझे अपने दोस्तों की पिक्चर दिखाने ले जाना है तो मेरी पॉकेट मनी भी जरा बढ़ा दो अब , और सुनिए जी मेरी किटी पार्टी वालों ने , घुमने जाने का प्लान बनाया है , तो मुझे भी इस बार दो हजार रुपये ज्यादा चाहिए | और हाँ एक नयी साडी तो बनती है, सेलरी बढ़ने की ख़ुशी में...क्यूँ बेटी ?
हाँ माँ , और मुझे भी नया मोबाइल चाहिये |


25.
रूपये की व्यथा
रूपये की व्यथा

गिर कर भी मैं हारा नहीं
उठता रहा, चलता रहा,
घटता हुआ रुपया हूँ मैं,
डॉलर से बस दबता रहा.
अपनों ने ही काला किया,
मैं था खरा, खोटा किया,
उसने किया है बेवतन,
जिनको सदा पाला किया.


26.
बचल रहय परिवार
बात कहय मे नीक छल, बेटा गेल विदेश।
मुदा सत्य ई बात छी, असगर बहुत कलेश।।
विश्व-ग्राम केर व्यूह मे, टूटि रहल परिवार।
बिसरि गेल धीया-पुता, दादी केर दुलार।।
हेरा गेल अछि भावना, आपस के विश्वास।
भाव बसूला के बनल, भोगि रहल संत्रास।।


27.

बेटियां


sandeep Bhatt



बेटियां
एक खबर के मुताबिक महाराष्ट्र के बीड़ में कन्या भू्रणों को डाक्टर दंपत्ति द्वारा कुत्तों को खिलाए जा रहे हैं। इस मामले में जिस डाक्टर दंपत्ति को पकड़ा गया है उन्हें पहले भी इसी मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पैसे और पहुंच से वे छूट गए थे या जो भी रहा हो लेकिन फिर से वे अपने पुराने काम पर लौट आए।
ऐसे न जाने कितनी ही लड़कियां गर्भ में ही मार दी जा रही हैं। मां-बाप की सहमति से ही क्रूर डाक्टर इस तरह की घिनौनी हरकत को अंजाम देते हैं। लेकिन भ्रूण का कुत्ते को खिलाया जाना गहरी शर्म पैदा करता है। पता नहीं क्या कहा जाए लेकिन ऐसे किसी भी डाक्टर का पंजीयन तुरंत रद्द कर दिया जाना चाहिए और उसे इतनी कड़ी सजा देनी चाहिए कि ऐसा सोचने से भी पहले हर कोई हजार बार सोचे। हम वाकई अब भी दुनिया के उन पिछड़े समाजों में से हैं जहां आधी दुनिया को अब भी पैदा होने से पहले ही खत्म कर दिया जाता है और अब तो हद है कि उन्हें जानवरों को खिला दिया जा रहा है।



28.

जर्जर हुआ 350 साल पुराना राधा-कृष्ण ऐतिहासिक मंदिर


Dr Mandhata singh



शाहजहांपुर से करीब 42 किमी दूर पुवायां तहसील के मुड़िया कुमिर्यात गांव में करीब 350 साल पुराना राधा-कृष्ण का मंदिर है। बावन दरवाजों वाले इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। जर्जर होते इस मंदिर को मरम्मत की जरूरत है, लेकिन मरम्मत के लिए धन की मांग वाली फाइल पुरातत्व विभाग में धूल फांक रही है।
यह ऐतिहासिक मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 42 किमी दूर है। जिले की सबसे समृद्ध तहसील पुवायां नगर से बंडा रोड पर करीब दस किमी चलने पर जुझारपुर मोड़ पड़ता है। यहीं से पश्चिम के लिए पतली सी पक्की सड़क जाती है। इसी सड़क पर चार किमी दूरी पर है मुड़िया कुमिर्यात गांव। मुड़िया कुमिर्यात से पहले एक गांव और पड़ता है वनगवां। वनगवां से आगे बढ़ते ही मंदिर के विशाल बुर्ज दिखाई देने लगते हैं।


29.
सत्यमेव जयते!..ये आमिर खान नहीं है!

आज पहली बार टी.वी.चेनल स्टार प्लस पर ‘सत्यमेव जयते'प्रोग्राम देखा !...यह प्रोग्राम शुरू से ही सराहा गया है...कभी कन्याभ्रूण ह्त्या के विषय को लेकर तो कभी समाज में व्याप्त ‘दहेज’ नाम के राक्षस को ले कर...हर बार इस प्रोग्राम में एक नया विषय चुन कर, उसपर विशेष चर्चा की गई है!...सभी विषय सामाजिक होने की वजह से खूब पसंद किए गए है....इस प्रोग्राम के सूत्रधार आमिर खान है!

...आज इस प्रोग्राम के अंतर्गत ‘ स्वास्थ्य और डॉक्टर्स’ विषय पर प्रकाश डाला गया!...कुछ डॉक्टर्स मरीजों के स्वास्थ्य के साथ कैसा खिलवाड करते है ...यह दिखाया गया!...कभी कभी आवश्यकता न होने पर भी मरीजों को कई मेडिकल टेस्ट करवाने के लिए मजबूर किया जाता है...और कई बार ऑपरेशन की जरुरत न होने पर भी ....मृत्यु का डर दिखा कर...ऑपरेशन करवाने के लिए मजबूर किया जाता है....सिर्फ पैसे कमाने के लिए ऐसा किया जाता है...यह बताया गया...
...बहुत से जाने-माने डॉक्टर्स इस शो में उपस्थित थे और मेडिकल स्टूडंट्स भी उपस्थित थे!...मेडिकल स्टूडंट्स ने माना कि मेडिकल में एडमिशन के लिए 50 से 60 लाख रुपयों तक का डोनेशन भी लिया जाता है...वह भी चेक से नहीं बल्कि कैश में लिया जाता है...अब इस प्रकार ब्लैक मनी का लेना-देना भी सामने आ ही गया....प्रोग्राम बहुत ही अच्छा रहा!



30.
कॉपीराइट कानून में बदलाव: बेबसी के दिन बीते रे भैया..

किसी भी रचना का सृजन होते ही उसका कॉपीराइट उसके रचयिता के पास हो जाता है। इसके लिए अलग से किसी तरह के पंजीकरण की जरूरत नहीं है। बस कानूनी विवाद उठने पर रचयिता को ये साबित करने की जरूरत होती है कि फलां रचना उसने अमुक समय पर तैयार कर ली थी। अपनी ही रचना अपने पास रजिस्टर्ड लिफाफे से भेज उसे यूं ही सीलबंद रहने देने या फिर उसे अपनी ही ई मेल आईडी पर मेल करके उसे बिना खोले पड़े रहने देने के तरीके इसके लिए कामयाब तरीके माने जाते रहे हैं। पर, क्या हो जब आपके लिखे या गढ़े की चोरी हो जाए? या कोई और ही इसका कारोबारी इस्तेमाल करने लगे? संसद के दोनों सदनों से पारित हुए कॉपीराइट कानून संशोधन अधिनियम 2011 का मसौदा पढ़ने के बाद ऐसी ही कुछ और नुक्ता-चीनियों के बारे में विस्तार से ख़ास आपके लिए ये ख़ास जानकारी।

31.
राष्ट्रीयविज़न के बिना ममता बनर्जी की बौनी राजनीति

पश्चिम बंगाल में संकीर्ण राजनीतिक पांसे तेजी से फेंके जा रहे हैं। इससे सामाजिक जीवन में अनुदार भावबोध पुख्ता होगा। इसे चालू भाषा में बौनी राजनीति कहते हैं। बौनी राजनीति वे करते हैं जिनके पास राष्ट्रीय विज़न नहीं होता। ममता बनर्जी के सत्ता में आने के साथ यह उम्मीद जगी थी कि राज्य सरकार नीतिगत बौनेपन से बाहर निकलेगी।लेकिन विगत एक साल में पश्चिम बंगाल में नीतिगत संकीर्णतावाद से निकलने की बजाय और भी ज्यादा अनुदार भावों-विचारों के हमले तेज हुए हैं।

32.
एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना


एक बार दिन भर लोंगों की चुगलियों से त्रस्त होकर एक आदमी बहुत परेशान था. करता भी क्या किससे लड़ता झगड़ता उसने सोचा कि चलो इस तनाव से मुक्ति के लिये एक वसीयत लिखे देता हूं सोचते सोचते कागज़ कलम उठा भी ली कि बच्चों की फ़रमाइश के आगे नि:शब्द यंत्रवत मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा बाज़ार से आइसक्रीम लेने . खा पी कर बिस्तर पर निढाल हुआ तो जाने कब आंख की पलकें एक दूसरे से कब लिपट-चिपट गईं उस मालूम न हो सका. गहरी नींद दिन भर की भली-बुरी स्मृतियों का चलचित्र दिखाती है जिसे आप स्वप्न कहते हैं .. है न..?
   आज  वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा
मेरे प्रिय आत्मिन
सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,


33.

तकिये की ताक़त
pillows
ह मारे लिए भाषा संवाद का जरिया होती है, अर्थ जानने का नहीं । संवादों के जरिए समूचे मनोगत को अभिव्यक्ति मिलती है न कि शब्दार्थ को । शब्द विशिष्ट अर्थ को प्रकट करते हैं । वाक्यांश में उनके संदर्भ बहुधा भिन्न होते हैं । अक्सर ऐसा भी होता है कि अपनी मूल भाषा में व्यापक अर्थवत्ता वाले शब्द किसी दूसरी भाषा में पहुँचकर किसी एक ही अर्थ को ध्वनित करने लगते हैं अर्थात रूढ़ हो जाते हैं । इसीलिए हम किन्हीं शब्दों का सही-सही अर्थ न जानने के बावजूद उन्हें वाक्यों में प्रयोग करते हैं । ऐसा ही एक शब्द है तकिया । सिरहाने के लिए उपयोग में आने वाला छोटे गद्दी के लिए बेहद आम शब्द है तकिया । संस्कृत में इसके लिए उपधान या उच्छीर्षक शब्द हैं । उद् यानी उठान, ऊपर आदि । शीर्ष(क) यानी सिर, उच्च । मोनियर विलियम्स उच्छीर्षक प्रविष्टि में इसका अर्थ " that which raises the head " , a pillow अर्थात “वह जो सिर को ऊपर उठाए यानी तकिया” बताते हैं । गौरतलब है कि मराठी में तकिया के लिए उशी शब्द है और इसका जन्म उच्छीर्षक से हुआ है । वैसे बोलचाल में तकिया के लिए सिरहाना शब्द भी चलता है ।



34.
क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है
इस चिट्ठी में नैनीताल में हॉकी मैच और क्रकेट की दीवनगी के कारण अन्य खेलों के दुर्भाग्य की चर्चा है।
Hockey-All India Traders Cup -2009
यह चित्र आनन्दमय चैटर्जी का है और उनके फ्लिकर चित्र संकलन से लिया गया है।
नैनीताल में, हमने मचान रेस्त्रां में दोपहर का खाना खाया। वहां से बाहर निकल कर, शुभा, मित्रों को नैनीताल से भेंट देने कि लिये, कुछ शॉल खरीदने चाहे। वह शॉल देखने चली गयी। मुझे खरीदारी करने पर मजा नहीं आता है। मैं उसके साथ नहीं गया।


35.
जीवन एक लकीर सा

जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला


36.

सामान्य ज्ञान


आज एक वाकया हो गया. वैसे घर में तो तीन स्नानगृह/शौचालय है, मुझे ऊपर की मंजिल में एकदम बड़े वाले में जाना अच्छा लगता है. एक तसल्ली होती है क्योंकि मुंबई वाले जब यहाँ आते हैं तो उनका कहना होता था कि यह तो हमारे कमरे से बड़ा है. ऊपर से बाथ टब भी है जिसका प्रयोग हमने कभी नहीं किया. पानी कहाँ से लायें. कभी कभार जब परिवार के बच्चे आ जाते थे तो उनके मन बहलाव के लिए बचा बचा कर पहले से टब को भर लिया करते. लगता है हम भटक गए. मामला यह था कि अन्दर घुसने के बाद जब दरवाजे की सिटकिनी बंद करनी चाही तब उसका ढुचू  (नोब) नीचे गिर गयी. उसे उठाकर उसके  लिए बने हुए छेद में लगा तो दिया लेकिन मामला नहीं जमा. वह फिर निकल जाता. मुझे लगा कि अब इसे बदलना ही होगा. वैसे कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि घर   में उस समय मैं अकेला ही था. निवृत्त होने के बाद याद आया कि मेरे पास अरलडाईट है. मैं पुनः उस नोब को अपनी जगह स्थापित कर सकता हूँ. मैंने मिश्रण बनाया और लेप लगाकर नोब को अपनी जगह फिक्स कर दी. शाम को देखता हूँ कि  वह  इस कदर फिक्स हो गया  कि उसे हिलाया ही नहीं जा सकता. पेंचकस का इस्तेमाल कर हमने उसे अनुशाषित किया. देखते हैं कब तक चलता है.


37.
क्यों डरते हो तुम प्यार से.....?

क्यों डरते हो तुम प्यार से
ये भी भला कोई डरने की चीज़ है
प्यार तो वो कोमल एहसास है
जो किसी को भी मिलता है नसीब से



38.
प्रतिदान
न देखी  गयी
जवान बेटे की वेदना ,
हाथ जोड़े ,अश्रु  भरे नेत्र ,
दारुण पुकार !
हे ! कलयुग के भगवान  !
मेरा गुर्दा ,
मेरे बेटे को लगा दो ...../
आलम्ब है ,
अपने मासूम शावकों का ,
भार्या ,माँ बाप का
आधार स्तम्भ है ,
गिरने से बचा लो ...../


39.
बालिग़ सिर्फ उम्र से ही नहीं हो रहे थे

क्या करूं उम्म... उससे पैसे मांगू या नहीं ?
कपिल से तो ले नहीं सकता। उसकी खुद की हज़ार समस्याएं हैं। गौतम दे सकता है लेकिन देगा नहीं। सुनीती आज देगी तो कल मांगने लगेगी। अविनाश एक सौ देता है तो दो घंटे बाद खुद उसे डेढ़ सौ की जरूरत पड़ जाती है। सौमित्र के पास पान गुटके खाने के लिए तो पैसे जुट जाएंगे लेकिन मेरे मामले में वो लाचार है, जुगाड़ नहीं कर सकेगा। रोहित से कहूंगा कि पैसे चाहिए तो तुरंत नया बैट दिखा देगा कि अभी अभी छाबड़ा स्पोर्टस् से खरीद कर लाया हूं, मेरा बजट तो सोलह सौ का ही था लेकिन इसमें स्ट्रोक है और साथ ही हल्का भी सो पसंद भी यही आया इसके लिए चैबीस सौ का इंतजाम करना पड़ा। सो तुम्हें क्या तो दूंगा उल्टे आठ सौ रूपिया उधार ही लगवा के आया हूं।


40.
क्या सच में गर्मी बहुत ज्यादा है या सुविधाओं ने हमें कुछ ज्यादा ही नाज़ुक बना दिया है?
क्या सच में गर्मी बहुत ज्यादा है? क्या इससे पहले कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ी? क्या थर्मामिटर का पारा सूरज के कहर से पहले कभी नही थर्राया? क्या सच में गर्मी से जीना मुहाल हो गया है? इतना ही नहीं और भी कर्इ सवाल मेरे दिमाग में उमड़ घुमड़ रहे थे। जितनी गर्मी सच में पड़ रही है उससे ज्यादा समाचार देख कर लगने लगी है। क्या सच में वातावरण बहुत ज्यादा गर्म हो गया है या फिर हम जरूरत से ज्यादा नर्म हो गये हैं? 
मुुझे याद है नर्इ नर्इ नौकरी लगी थी। जवानी का जोश था और नर्इ नौकरी का भी कुछ असर था। तब भी सूरज इतना ही गर्म हुआ करता था और तब मेरे पास मोटर साइकिल हुआ करती थी। भरी दोपहरी में समाचारों के लिए भटकते समय ना ऊपर आसमान से बरसती आग जलाती थी और ना ही तेज गर्म हवाओं के थपेड़े ही झुलसा पाते थे। ना कपड़े से मुंह को लपेटने का फैशन था और ना ही एसी फेसी का जमाना था। अप्रैल,मर्इ,जून, में भी एैसे घूमते थे जैसे नवंबर दिसंबर का सुहावना मौसम हो।
और पहले के बाद कहूँ तो कालेज से लेकर बेरोजगारी के शानदार सुनहरा दौर में गर्मी सर्दी का फर्क ही नहीं पता चला। फेसबूकिया बल्लू उर्फ बलबीर भारज, चुन्नू उर्फ धनंजय सिंह और मै हम तीनों तीन सवारी स्कूटर पर सवार होकर निकलते थे तो सीधे रात को ही घर जाते समय अलग होते थे। बरसात सर्दी और गर्मी में बिना नागा तीनों अपनी अपनी प्रोबेबिलिटी के घरों के आस पास मंडराते थे। भरी दोपहरी एक्सट्रा क्लास और कम्बाइण्ड स्टडी के बहाने उस समय शहर से बाहर समझे जाने वाले सार्इस कालेज और उसके हास्टल में मटरगश्ती करने जाते थे तब भी आसमान पर सूरज एैसे ही आग उगलता था। पर तब उसकी तपन जलन का एहसास तक नहीं होता था।

41.
ईमानदारी अब डराती है !
ईमानदारी
अब कीमत चुकाती है ,
बीच सड़क पर
क़त्ल होती है वह
व्यवस्था आँख मूँद कर चली जाती है !
ईमानदारी
अब सबको डराती है,
दिन के उजाले में भी
स्याह*अँधेरा लाती
सूरज की रोशनी  शर्माकर चली जाती है !


42.
मैं एक आम इन्सान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ
हर कदम जिन्दगी से परेशान हूँ
मैं जन्म लेता हूँ , गंदे सरकारी अस्पतालों में
या फिर अँधेरे कमरों, सूखे खेतो या नालो में
पलता-बढ़ता  हूँ, संकरी-छोटी गलियों में
खेलता फिरता हूँ, मिटटी-कीचड़ और नालियों में
ऊँची इमारतों को देखकर , मैं हैरान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ
खंडहर  से सरकारी स्कूलों से की पढाई
क्लास बनी मैदान ,साथियों  से होती लडाई
होश सँभालते ही, शुरू होती काम की तलाश
आँखों में सपने , होती कर गुजरने की आस
पर लगता मैं बेरोजगारी की शान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ



43.
शादी-विवाह में समान गुण-धर्म की आवश्यकता
शादी-विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें बंधने के लिए बहुत सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है । चाहे जिससे विवाह नहीं किया जा सकता । जो लोग जल्दीबाजी में कोई ऐसा-वैसा कदम उठा लेते हैं । आगे चलकर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है । उनके बच्चों को भी इससे समस्याओं का सामना करना पड़ता है । विवाह रुपी बंधन में बंधने के लिए समान गुण-धर्म पर जोर देना बहुत आवश्यक है । इसके बिना सुसंगत जीवन जीना सरल नहीं होता ।
    संत और सदग्रन्थ कहते हैं कि विवाह में कम से कम तीन चीजें जरूर अच्छी और अनुकूल होनी चाहिए: १. घर, २. वर, और ३. कुल । लड़की के अनुरूप लड़का और लड़के के अनुरूप लड़की का होना आवश्यक है- ‘जौ घरु वरु कुलु होय अनूपा । करिअ विवाहु सुता अनुरूपा’ । यदि लड़की पढ़ी-लिखी है तो लड़का भी ऐसा ही होना चाहिए । लड़की सुंदर हो तो लड़का भी सुंदर होना ही चाहिए । इत्यादि । कहने का तात्पर्य यह है कि शादी-विवाह में विपरीत गुण-धर्म को जहाँ तक हो सके त्यागना चाहिए ।


44.

Real Beauty – वास्तविक सौंदर्य

हर सुबह घर से निकलने के पहले सुकरात आईने के सामने खड़े होकर खुद को कुछ देर तक तल्लीनता से निहारते थे.
एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा. आईने में खुद की छवि को निहारते सुकरात को देख उसके चेहरे पर बरबस ही मुस्कान तैर गयी.
सुकरात उसकी ओर मुड़े, और बोले, “बेशक, तुम यही सोचकर मुस्कुरा रहे हो न कि यह कुरूप बूढ़ा आईने में खुद को इतनी बारीकी से क्यों देखता है!? और मैं ऐसा हर दिन ही करता हूँ.”
शिष्य यह सुनकर लज्जित हो गया और सर झुकाकर खड़ा रहा. इससे पहले कि वह माफी मांगता, सुकरात ने कहा, “आईने में हर दिन अपनी छवि देखने पर मैं अपनी कुरूपता के प्रति सजग हो जाता हूँ. इससे मुझे ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिलती है जिसमें मेरे सद्गुण इतने निखरें और दमकें कि उनके आगे मेरे मुखमंडल की कुरूपता फीकी पड़ जाए”.


45.
माओवादी सिनी सय की कहानी.

सिनी साय
सारदा लहांगीर
सात मई को मेरे एक पत्रकार मित्र ने सूचना दी कि जाजपुर पुलिस ने एक बुजुर्ग महिला माओवादी को अस्पताल से गिरफ्तार किया है. नाम है उसका सिनी सय. नाम सुनकर मैं चौंकी. मैंने झटपट अपना कैमरा निकाला ओर जाजपुर की ओर निकल पड़ी. पिछले कई सालों से सिनी सय को मैं ढूढ रही थी पर उसका कोई अता-पता नहीं था.
रास्ते भर मैं सिनी सय के बारे में सोचती रही. पचपन साल की सिनी सय 1997 में जाजपुर जिले के गोबरघाटी गांव की सरपंच के तौर पर जानी जाती थी. इस तेज-तर्रार आदिवासी महिला सरपंच को लोग उसके व्यवहार कुशलता के कारण जानते थे. लेकिन यह सिनी सय का अधूरा परिचय है.


46.
'कलकतिया भउजी' में गायिका की भूमिका में प्रतिभा सिंह

भोजपुरी गायिका प्रतिभा सिंह फिल्म कलकतिया भउजी में गायिका की भूमिका अदा कर रही हैं। फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है। फिलहाल उन्होंने छपरा के समीप तरइयां रामबाग गांव में अपनी दो दिन की शूटिंग आज रविवार 27 मई 2012 को पूरी की। शेष शूटिंग जल्द ही कोलकाता में होगी। इस फिल्म के निर्देशक हैं अशोक जायसवाल, जिन्होंने प्रतिभा सिंह के म्यूज़िक एलबम 'मेहरारू ना पइब' का निर्देशन किया है। प्रतिभा सिंह ने इसके पहले भी कई फिल्मों में अभिनय किया है जिनमें प्रमुख हैं भाई हो त भरत नियन, बहिना तोहरे खातिर। इस फिल्म में अनुराग नायक एवं मीरा नायिका की भूमिका में हैं। इंद्राणी सिंह एवं डाली आदि ने भी इसमें अभिनय किया है।


47.
और कुछ मौत के बाद...

बेवजह की बातें लिखना, मुहब्बत करने जैसा काम है कि हो गई है, अब क्या किया जा सकता है. पोस्ट का एंट्रो लिखना घर बसाने सरीखा मुश्किल काम...
"एक 'चुप' की आत्म कथा"
मेरी हज़ार सखियाँ थी
मैं जब भी रही अपने आपे में
मेरे हज़ार सुख थे.
मुझे अक्सर नहीं पसंद आता था
अपना यूं होना
कि वीराना और बढ़ता ही जाता था.


48.
फिल्‍म समीक्षा : अर्जुन

Review : Arjun: The Warrior Prince

योद्धा अर्जुन की झलक

-अजय ब्रह्मात्‍मज

देश में बन रहे एनीमेशन फिल्मों की एक मूलभूत समस्या है कि उनके टार्गेट दर्शकों के रूप में बच्चों का खयाल रखा जाता है। बाल दर्शकों की वजह से उसे प्रेरक, मर्मस्पर्शी और बाल सुलभ संवेदनाओं तक सीमित रखा जाता है। अभी तक अपने देश में एनीमेशन फिल्में पौराणिक और मिथकीय कथाओं की सीमा से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। इन्हीं सीमाओं और उद्देश्य के दबाव में अर्जुन तकनीकी रूप से उत्तम होने के बावजूद प्रभाव में सामान्य फिल्म रह जाती है। अर्नव चौधरी और उनकी टीम अवश्य ही संकेत देती है कि वे तकनीकी रूप से दक्ष हैं। एनीमेशन फिल्म को एक लेवल ऊपर ले आए हैं।


49.
सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त मिले मुश्किल से,
कभी व्यर्थ न झगड़ा करना.
मिलजुल कर के साथ खेलना,
कभी न अपना तेरा करना.
धनी, गरीब, धर्म का अंतर,
कभी न तुम दीवार बनाना.
हो गरीब गर मित्र तुम्हारा,
उसे न यह अहसास दिलाना


50.
.... जो आपको न जाने ताके बाप को न जानिए ... :)
इन दिनों मन काफी उद्विग्न है .और उद्विग्नता का कारण भी 'मानवीय' है . कुछ तो ब्लॉग जगत से जुडा है  बाकी दीगर दुनिया के मानवी कमियों से ...वैसे तो मैं मूढ़ता की हद तक आशावादी हूँ मगर कभी कभी लगता है यह दुनिया सचमुच एक जालिम दुनिया ही है -यहाँ परले दर्जे की स्वार्थपरता है,आत्मकेंद्रिकता है ,अपने पराये की सोच है ,कृतघ्नता है ,धोखाधड़ी और छल है,अहमन्यता है ,हिंसा  है ,दुःख दर्द के सिवा और कुछ नहीं है -गरज यह कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है ..हमीं लोगों ने इसे रहने लायक नहीं छोड़ा है ..भले ही हमारा चिर उद्घोष सत्यमेव जयते का है मगर अभी इसी बैनर से चल रहे दूरदर्शन कार्यक्रम ने  हमारे अपने समाज के घिनौने चेहरे की परतें उघाड़नी शुरू कर दी हैं -अब तक के केवल तीन इपीसोड़ ने ही बता दिया है कि हमरा समाज दरअसल लुच्चों कमीनों से भरा हुआ है ....गैर पढ़े लिखे नहीं, पढ़े लिखे ज्यादा खूंखार हैं ,संवेदनाओं से रहित हैं ...जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ इन दिनों काफी शिद्दत से याद आ रही हैं -
प्रकृति है सुन्दर परम उदार

नर ह्रदय परमिति पूरित स्वार्थ

जहां सुख मिला न उसको तृप्ति

स्वप्न सी आशा मिली सुषुप्ति


51.
राबर्ट ब्लॉय की कविता :पढते पढते , पढ जाइए

52.डायलाग तो डायलाग ही था …कमाल तो होना ही था : कमाल , अजी बेमिसाल कहिए मोहतरमा 

53.और तब ईश्वर का क्या हुआ : जाकर खुदे देखा जाए हुजूर

54.चलते चलते आखिरी सलाम हो जाए : पहले जरा इस पोस्ट को पढने का काम हो जाए

55. क्या भारत में निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण न्यायसंगत है : अजी इसीलिए तो लोकतंत्र का यहां पर दुर्गत है

56.एक नदी थी : हां कभी थी

57. वकील साहब काश होते आज : खोल देते फ़िर सारे राज़

58.तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो : लज़ीज़ हो मगर , छोले भटूरे तो नहीं हो

59.तुम्हारी आवाजों के कुछ टुकडे : कित्ते पैने हैं जी

60.रामचरण निर्मलकार को जानते हैं आप : नहीं , तो यहां जाकर जानिए

61.चित्रकूट के रामघाट : देखन वाले ठाटबाट

62.स्टीकर वाला नूडल्स : बच्चों की तो पसंद यही बस

63. गर्मियों की छुट्टियां : हाय सबके मन को भाएं

64. यम तुम ऐसे तो नहीं थे : अबे मानव तुमही कौन ऐसे थे

65.सार्वजनिक स्नानागार : नहा धो के फ़ौरन हो जाओ तैयार

66.लोकपाल नहीं ये कुछ और बना रहे हैं.
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67.

दूबे जी का कार्टून





68.
तख्ते का क्या भरोसा



69.
आखिर आज का युवा कैरियर के तौर पर राजनीति को क्यूँ नहीं देखता...

           आज कल बेरोजगारी अपने चरम पर है, हर किसी के हाथों में डिग्री है, इंजीनियरिंग से कम में तो कोई बात ही नहीं करता... लेकिन नौकरी ... उसके लिए तो गज़ब की मारामारी चल रही है... ऐसी कोई डिग्री, ऐसा कोई कोर्स नहीं जहाँ नौकरी की गारंटी मिलती हो.... ऐसे में सब अपने कैरियर के चुनाव में पेशोपेश में रहते हैं... स्कूल के समय से ही विद्यार्थियों पर दवाब बन जाता है ताकि वो अपना कैरियर चुनकर उसपर अपना 100 परसेंट दे सकें... तरह तरह के इन अवसरों को तलाश करते युवा गलती से भी कभी राजनीति में आने का नहीं सोचते... आखिर ऐसा क्या है जो उन्हें इस तरफ आने से रोक देता है, जबकि राजनीति के बारे में बातें सभी करते हैं... हर दूसरा आदमी कभी किसी नेता को, अफसर को, सिस्टम को गाली देता हुआ मिल जाएगा... राजनीति को सभी गन्दा कहते हैं लेकिन कोई भी उसमे उतर कर उसको साफ़ नहीं करना चाहता... सभी कहते हैं कि फलाना नेता क्रिमिनल है उसकी छवि साफ़ सुथरी नहीं है... अब जब देश के पढ़े लिखे और जागरूक लोग उधर का रुख ही नहीं करेंगे तो ऐसे लोग आपके प्रतिनिधि बनकर देश चलाएंगे न


70.
ब्राह्मण कौन?
ज्ञानी जन तौ नर कुंजर में, सम भाव धरत सब प्रानिन में। 
सम दृष्टि सों देखत सबहिं, गौ श्वानन में चंडालन में ॥
[डॉ. मृदुल कीर्ति - गीता पद्यानुवाद]
जब से बोलना सीखा, दिल की बात कहता आया हूँ। मेरे दिल की बात क्या है, कुछ मौलिक नहीं, वही सब जो अपने आसपास सुना, पढा, समझा और सीखा है। सब कुछ सही होने का दावा नहीं कर सकता हाँ इतना प्रयास अवश्य रहता है कि सत्य अपनाया जा सके और उसे प्रिय और श्रेयस्कर मान सकूँ।
उपनिषदों में जाबालि ऋषि सत्यकाम की कथा है जो जाबाला के पुत्र हैं। जब सत्यकाम के गुरु गौतम ने नये शिष्य बनाने से पहले साक्षात्कार में उनके पिता का गोत्र पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनकी माँ जाबाला कहती हैं कि उन्होंने बहुत से ऋषियों की सेवा की है, उन्हें ठीक से पता नहीं कि सत्यकाम किसके पुत्र हैं। ज्ञानवृत्ति के पालक ऋषि सत्य को सर्वोपरि रखते आये हैं। सत्यकाम की बात सुनते ही गौतम ऋषि उन्हें सत्यव्रती ब्राह्मण स्वीकार करके जाबालि गोत्र का नाम देकर पुकारते हैं।
खून से ही वंश की परम्परा नहीं चलती, जो विश्वास वहन करता है, वही होता है असली वंशधर ~ सत्यकाम फ़िल्म से एक सम्वाद
बात की शुरुआत हुई एक मित्र के फ़ेसबुक स्टेटस से जिसका शीर्षक था "बन्दउँ प्रथम महीसुर चरना :)" संलग्न लिंक था टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर से जिसमें चर्चा थी उस ट्रेंड की जहाँ निसंतान भारतीय दम्पत्तियों की पहली पसन्द ब्राह्मण संतति प्राप्त करना पाई गयी थी। ब्राह्मण शब्द पर ज़ोर था। काफ़ी दिन बाद फिर से ध्यान गया उस शब्द पर जिसकी चर्चा अक्सर होती है पर उसका अर्थ शायद अलग-अलग लोगों के लिये अलग ही रहा है। एक बुज़ुर्ग भारतीय मित्र हैं जो जाति पूछे जाने पर अपने को "जन्मना ब्राह्मण" कहते थे क्योंकि तथाकथित ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने अपने को कभी ब्राह्मण नहीं माना। एक अन्य जन्मना ब्राह्मण मित्र हैं जो अक्सर जन्मना ब्राह्मणों को कोसते दिखाई देते हैं। विद्वान हैं, कई बातें सही भी हैं लेकिन कई बार यह कोसना सनक की हद तक विघ्नकारी हो जाता है।


71.
खुद को पाना आसान नहीं !
- रश्मि प्रभा...

खुद की तलाश
खुद के लिए होती है
क्योंकि प्रश्न खुद में होते हैं
ये बात और है
कि इस तलाश यात्रा में
कई चेहरे खुद को पा लेते हैं
................
अबोध आकृति
जब माँ की बाहों के घेरे में होती है
तब वही उसका संसार होता है
वही प्राप्य
और वही संतोष .... !
पर जब अक्षरों की शुरुआत होती है
साथ में कोई और होता है
प्रथम द्वितीय ..... का दृश्य होता है
तो ज्ञान में हम कहाँ हैं
इसकी तलाश होती है !
अजीब बात है -


72.
तुमसे आखिरी विनती - डॉ नूतन गैरोला
देखो न …..अभी मुझमे साँसों का आना जाना चल रहा है……जिंदगी के जैसे अभी कुछ लम्हें बचे हुवे है ….. आस का पंछी अभी तक पिंजरे में ठहरा  है …. सुबह पर अब सांझ का पहरा है …. और सांझ की इस बेला पर याद आने लगीं  है ..वो धुंधली परछाइयाँ  ....जब हम संग संग रोये थे…. और इक दूजे के पौंछ आंसू  खिलखिला कर हँस दिए थे .. साथ था न तुम्हारा मेरा, तो मलाल किस गम का … लेकिन विधाता को क्या मंजूर था ..छोड़ दी थी डोर उसने मेरी जिंदगी की पतंग की .. तुमसे दूर किसी और आसमां पर जा कर फडफडाती रही जिंदगी .. हवाओं में लहराती रही … बहती रही उधर जिधर बहाती रही …क्षितिज पर चटख रंगों वाली सुनहली  अकेली पतंग ..  कई हाथों को लुभाती रही … इतर हाथों से फिसलती रही ....डगमगाती रही, पर बढती रही .... तब तक जब तक वह हवाओं की  प्रचंडता से टूट कर छिन्न भिन्न न हो जाये या कि बारिश में गल कर टपक ना जाये .. देखो न सिन्दूरी सांझ भी ढलने को है और रौशनी भी गुम होने को है बस तुमसे आखिरी बात … 
Harbour_Sunset_wallpaper

73.
श्रवण कुमार आज भी हैं !
          मैं   जीवन को इतने  करीब अकेले ही तो नहीं जीती हूँ  हर इंसान के आस-पास ऐसा  गुजरता  है।  कुछ पढ़ने वालों को  लगा कि मैं  सिर्फ नकारात्मक छवि ही प्रस्तुत  करती हूँ। ऐसा नहीं है मैं खुद जिस परिवार हूँ वहां मैंने जो  देखा  है तो ऐसी घटनाएँ कहीं हिला देती हैं।
                 मैंने  अपने जीवन में ऐसा देखा है तो श्रवण कुमार  देखने केलिए कहीं और नहीं जाना  पड़ता है। एक ऐसा इंसान भी मैंने देखा है जिसने अपने जीवन के 39  तक सिर्फ अपनी माँ  की सेवा में गुजारा हैं। न अपना करियर देखा और न भविष्य . फिर भी कभी कोई कमी नहीं हुई .  यह बात और हैं कि  अगर उन्होंने अपनी माता पिता को नजरअंदाज किया होता


74.
पिंजरे का पंछी

ये नीला आसमान ,हंसी मौसम सुबह-सुबह का चहकना,
बस पिंजरा ही नज़र आता है ,सपना खुल जाने के बाद|
कितने ही सितम ,दुःख ,कितने कष्ट सहे हैं जिन्दगी में ,
कितना भयानक मंजर होता है,तूफान गुजर जाने के बाद |
मैं भी नीलाम्बर में उड़ता, अपने भाई बहनों से मिलता,
बहुत ही दुःख होता है ,अपनों से बिछुड़ जाने के बाद |
कहाँ हर किसी को मिलती है ,मनचाही जिन्दगी ,
सब कुछ भूल जाते हैं लोग,वक्त गुजर जाने के बाद |
अच्छा होता पिंजरे में ही रखता मुझको सारी जिन्दगी,
जालिम ने पर काटे  हैं ,उड़ना सिखाने के बाद |

75.
शिखंडी प्रधानमंत्री बन रहे हैं...!
कल एक सेकुलर ने मुझसे पूछा कि .... भाई आप तो हमेशा धर्म के बारे में लिखते हो...... तो आपके पास क्या सबूत है कि .... अभी ""कलयुग"" चल रहा है.
उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी ... और मैंने उसे बोला.....
अरे चड़ीये .......
1. आज हिंदुत्व का विरोध .. बुद्धिजीविता की पहली निशानी बन चूका है...!
2. भगवान राम.... जो दुनिया का फैसला करते हैं..... उनका फैसला कोर्ट कर रहा है....!
3. राम भक्तों को जिन्दा जलाया जा रहा है......!

76.
थमा हुआ इंकलाब

विचित्र दृश्य हैं।  रुपया गिर रहा है, लगातार गिर रहा है।  कब तक गिरेगा? किसी को पता नहीं है। प्रणब दा कहते हैं कि उधर यूरोप में किसी देश में जबर्दस्त आर्थिक संकट चल रहा है, उसे देख कर रुपया गिर रहा है। रुपया रुपया न हुआ कोई लड़की हो गई जो किसी लड़के को आते देख कर गिर जाए और इंतजार करे कि वह आएगा और उसे उठा लेगा।
सोना चढ़ रहा था कि रुपए की गिरावट को देख अचानक गिरा और लगातार तीन दिनों तक गिरा। लोगों ने सोचा डालर बेचो, रुपया खूब मिलेगा। मिले रुपए से सोना खरीद लो। लोग सोना खरीदने बाजार तक पहुँच भी न सके थे कि सोना एकदम चढ़ा और वापस अटारी पर जा पहुँचा।

77.
यमन की सी मिठास गंगा की शान्ति

उसे रंगों से बहुत प्यार था. कुदरत के हर रंग को वो अपने ऊपर पहनती थी. उसका बासंती आंचल लहराता तो बसंत आ जाता. चारों ओर पीले फूलों की बहार छा जाती. वो हरे रंग की ओढनी ओढती तो सब कहते सावन आ गया है. उसका मन भीगता जब भी तो बादल आकर पूरी धरती को बूंदों के आंचल में समेट लेते. सावन लहराने लगता. उसकी उदासियां काली बदलियों में और उसका अवसाद भीषण तूफान में जज्ब हो जाता. वो लाल रंग पहनती कभी-कभी. वो सुर्ख शरद के दिन हुआ करते थे. धूप अच्छी लगने लगती और नजर की आखिरी हद तक सुर्ख फूलों की कतार सज जाती. यहां तक कि उसके गालों पर भी गुलाब उतर आते. उसकी नाराजगी के दिनों को गर्मियों का नाम दिया लोगों ने. हालांकि वो जानती थी कि ये नाराजगी उसकी खुद से है और इससे किसी को नुकसान नहीं होना चाहिए. ऐसे में उसकी आंखें छलक पडतीं और तेज गर्मियों में बारिश की कुछ बरस पडतीं. वो मुस्कुराती और दुनिया को तेज गर्मियों से राहत मिलती. असल में उसे जिंदगी से प्यार था. जिंदगी के हर रंग से, हर खुशबू से.

78.

विन्‍डो 8 इंस्‍टाल करे




79.
उजबक वाणी
उजबक वाणी....
जन सेवा के नाम पर ,वोट मांगने आय
चुनते हि सरकार में ,लुट लुट सब खाय
मुस्काते मनमोहने,  सुरसा डालर आज
मतदाता घायल हुवा,फिर भी करते नाज
त्राहि त्राहि है देश में,कौन यहाँ बदनाम
एक हि थैली में घुसे ,चट्टे बट्टे नाम

80.
अनमोल बनाया जागरण जंक्शन ने -“Feedback”
राम कृष्ण खुराना
ज़ागरण जंक्शन की ओर से मंच पर बिताए पलों के खट्टे-मीठे अनुभव सांझा करने के बारे में मेल मिली ! निःसंदेह यह एक प्रशंसनीय कार्य है ! इसी बहाने पुराने खिलाडी (लिखाडी) भी पुनः मंच से जुड जायेंगे ! क्योंकि वैसे तो आजकल लोगों के पास किसी से बात करने का भी समय नहीं है ! दुनिया मतलब की है ! किसी ने ठीक ही कहा है -
तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली !
चलो बस हो चुका मिलना, न हम खाली न तुम खाली !!
यह मंच कई नए-नए प्रयोग करता रहा है और उसके बहुत अच्छे परिणाम भी निकले हैं ! दैनिक जागरण समाचार पत्र में भी नित नए प्रयोग हो रहे हैं जिससे एकरसता टूटती है और लेखकों व पाठकों को नई-नई चीज़ें पढने को मिलती हैं !
बात 2010 की है ! दैनिक जागरण में विज्ञापन पढा जिसमें जागरण जंकशन का सदस्य बनने तथा एक लेखन प्रतियोगिता (ब्लागस्टार) के आयोजन के बारे में लिखा था ! परंतु मैने उस समय इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया ! दो-तीन दिन बाद फिर वही विज्ञापन देखा ! तीसरी बार विज्ञापन देखने पर मेरा लेखक मन अपने आप को रोक नहीं सका और नेट पर जाकर जागरण जंक्शन की सदस्यता ले ली !

चलिए अब आपको मिलवाते हैं , अपने कुछ ब्लॉगर बंधु/मित्रों से , उनकी छवि और उनके रोचक परिचय के साथ …………………………….


81.

वन्दना अवस्थी दुबे

मेरा फोटो

कुछ खास नहीं....वक्त के साथ चलने की कोशिश कर रही हूं.........

82.

ZEAL

मेरा फोटो
An iron lady !

83.

वाणी गीत

मेरा फोटो
एक गृहिणी के दिल और दिमाग की रस्साकशी कलम से कागज पर उतरी
84.

नीरज गोस्वामी

मेरा फोटो
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.

85.

M VERMA

मेरा फोटो
वाराणसी में पला-बढ़ा, दिल्ली में अध्यापन कार्य में संलग्न हूँ। जब कभी मैं दिल के गहराई में कुछ महसूस करता हूँ तो उसे कविता के रूप में पिरो देता हूँ। अभिनय भी मेरा शौक है।

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Anupama Tripathi

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I enjoy writing and sharing my thoughts .....एम.ए(अर्थशास्त्र )में किया .कालेज में पढाया ,आकाशवाणी में गाया,फिर सब सहर्ष छोड़ गृहस्थ जीवन में लीन हो गयी |अभी भी लीन हूँ |किन्तु फिर भी कुछ था भीतर जो उदगार पाना चाहता था ..!जब से लिखने लगी हूँ ,पुनः गाने लगी हूँ ,मन प्रसन्न रहता है ..!!अपनी सभ्यता और संस्कृती से जुड़े रहना मुझे बेहद पसंद है |इसी प्रयास में सतत बनी रहती हूँ |अथक प्रयास से जो मिले उसे प्रभु प्रसाद समझ ग्रहण करती हूँ |इस छोटे से जीवन में कुछ छाप छोड़ सकूँ यही अभिलाषा है ...!!
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Vibha Rani Shrivastava

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न तो मैं एक कवियत्री हूँ और न लेखिका , तो फिर आप पूछेगें की , मैं यहाँ क्या कर रही हूँ.... ? जिस तरह , एक वक्ता के लिए श्रोता की जरूरत होती है , उसी तरह आप लिखने वालों के लिए एक पढने वाली मैं रहूगीं.... :) साथ ही , इस नए तकनीक ने पुरे विश्व को एक पन्ने पर एकत्रित कर दिया है, जिसमे मैं एक “ tipical Indian house-wife “ अपना वजूद तलाश रही हूँ |किसी से प्रेरणा पा , सागर में एक बूंद बनने की कोशिश जारी है.... !!

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पी.सी.गोदियाल "परचेत"

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ऐसा कुछ भी ख़ास है नहीं बताने को, अपने बारे में ! बस, यों समझ लीजिये कि गुमनामी के अंधेरो में ही आधी से अधिक उम्र गुजार दी !हाँ, अपनी बात कुछ भगत सिंह जी के अंदाज में इस तरह कहूंगा ; इन बिगड़े दिमागों में, ख्वाबों के कुछ लच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं। साभार, गोदियाल My humble request is to kindly ignore the typographical errors. My fondest wish is to inspire someone else to write something even better than I have done. Look forward to receiving your creative suggestions. regards, Godiyal

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डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish')

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काजल कुमार Kajal Kumar

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पिछले कई सालों से कार्टून बना रहा हूँ. 'लोटपोट' हिन्दी बाल साप्ताहिक के लिए ढाई दशक तक 'चिंप्पू' और 'मिन्नी' भी बनाये... एक अनुरोध... कार्टून आख़िर कार्टून है, आप भी किसी कार्टून को, गंभीरता से न लें (संपादकों की ही तरह). kajalkumar@comic.com

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सतीश सक्सेना

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जब से होश संभाला, दुनिया में अपने आपको अकेला पाया, शायद इसीलिये दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस न करे इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी ,करने के लिए तैयार रहता हूँ ! नियमित रक्तदाता हूँ, मरने के बाद किसी के काम आ जाऊं अतः बरसों पहले अपोलो हॉस्पिटल में देहदान कर चुका हूँ ! विद्रोही स्वभाव,अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलता है ! निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना और डर कर किसी के आगे सिर झुकाना बिलकुल पसंद नहीं ! ईश्वर से प्रार्थना है कि अन्तिम समय तक इतनी शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य बनाये रखे कि जरूरतमंदो के काम आता रहूँ , भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ और अंतिम समय किसी की आँख में एक आंसू देख, मुस्कराते हुए प्राण त्याग कर सकूं !


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संतोष त्रिवेदी

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जन्मस्थली भियामऊ, (डुबकी,फ़तेहपुर,ननिहाल)तथा पैतृक स्थान दूलापुर,रायबरेली.शुरूआती पढ़ाई-लिखाई पूरेपान्डेय,रायबरेली में करने के बाद फ़तेहपुर से आई टी आई की ट्रेनिंग तथा बी.एड.(छिवलहा से)किया । कुछ दिन दल्ली-राजहरा(छत्तीसगढ़) में भी रहा.चम्पतपुर(मनाखेड़ा),रायबरेली में अध्यापन कार्य करने के बाद सन् 1994से दिल्ली में हूँ । 'जनसत्ता' का तभी से नियमित पाठक हूँ और काफ़ी दिनों तक 'चौपाल' भी जमाई । हर संवेदनशील मुद्दे पर भड़ास निकालने की आदत है।

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प्रवीण पाण्डेय

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संग मेरे क्षितिज तक मेरा परिश्रम


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डॉ टी एस दराल

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मेडिकल डॉक्टर, न्युक्लीअर मेडीसिन फिजिसियन-- ओ आर एस पर शोध में गोल्ड मैडल-- एपीडेमिक ड्रोप्सी पर डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया -- सरकार से स्टेट अवार्ड प्राप्त-- दिल्ली आज तक पर --दिल्ली हंसोड़ दंगल चैम्पियन -- नव कवियों की कुश्ती में प्रथम पुरूस्कार --- अब ब्लॉग के जरिये जन चेतना जाग्रत करने की चेष्टा -- अपना तो उसूल है, हंसते रहो, हंसाते रहो. --- जो लोग हंसते हैं, वो अपना तनाव हटाते हैं. --- जो लोग हंसाते हैं, वो दूसरों के तनाव भगाते हैं. --- बस इसी चेष्टा में लीनं


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दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi

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Lawyer since 1978. Interest in writing, litrary-cultural-social activities. 1978 से वकील। साहित्य, कानून, समाज, पठन,सामाजिक संगठन लेखन,साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि।


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shikha varshney

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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न [:P].तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.खैर कुछ समय पत्रकारिता की और उसके बाद गृहस्थ जीवन में ऐसे रमे की सारी डिग्री और पत्रकारिता उसमें डुबा डालीं ,वो कहते हैं न की जो करो शिद्दत से करो [:D].पर लेखन के कीड़े इतनी जल्दी शांत थोड़े ही न होते हैं तो गाहे बगाहे काटते रहे .और हम उन्हें एक डायरी में बंद करते रहे.फिर पहचान हुई इन्टरनेट से. यहाँ कुछ गुणी जनों ने उकसाया तो हमारे सुप्त पड़े कीड़े फिर कुलबुलाने लगे और भगवान की दया से सराहे भी जाने लगे. और जी फिर हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब फुर्सत की घड़ियों में लिखा हुआ कुछ,हिंदी पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता है और इस ब्लॉग के जरिये आप सब के आशीर्वचन मिल जाते हैं.और इस तरह हमारे अंदर की पत्रकार आत्मा तृप्त हो जाती है


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संजय @ मो सम कौन ?

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डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता........


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निर्मला कपिला

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अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला तब से यहीं हूँ। बी.बी.एम.बी अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ। मेरी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है -1-सुबह से पहले [कविता संग्रह] 2 वीरबहुटी [कहानी संग्रह] 3-प्रेम सेतु [कहानी संग्रह] आज कल अपनी रूह के शहर [ इस ब्लाग ] पर अधिक रहती हूँ । आई थी एक छोटी सी मुस्कान की तलाश मे मगर मिल गया खुशियों का समंदर। कविता, कहानी, गज़ल,मेरी मन पसंद विधायें हैं। पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है।
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Khushdeep Sehgal

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breaking pens-computers since 1994
बंदा 18 साल से कलम-कंप्यूटर तोड़ रहा है

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ब्लॉ.ललित शर्मा

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परिचय क्या दूँ मैं तो अपना, नेह भरी जल की बदरी हूँ। किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ। मीत बनाने जग मे आया, मानवता का सजग प्रहरी हूँ। हर द्वार खुला जिसके घर का, सबका स्वागत करती नगरी हूँ।


101.

anju(anu) choudhary

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दुनिया की इस भीड़ मे मै अकेली सी खुद को तलाशती सी .. पर नहीं मिला कोई भी ऐसा...... जो कहें मुझ से आ कर कि क्यूँ है तू यूँ तन्हा सी ........ रिश्तो की इस भीड़ मे.. मै...मै को तलाशती सी........... अनु..(अंजु चौधरी)


चलिए तो अब अपने ई रिपोर्टर साहब को दीजीए आज्ञा , हमें आज आपको मजेदार टिप्पणियां भी तो पढवानी हैं , आते हैं शाम /रात तक टिप्पी का टिप्पा: टैण टैणेन पर लेकर

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