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बुधवार, 11 अप्रैल 2012

युवा सपने ,ख्याल - उम्र से अधिक अनुभवी हैं



सी एस देवेन्द्र , उनके शब्दों से उनका परिचय शुरू करते हैं ... यूँ भी ब्लॉग का हर पन्ना कहें या लिखनेवाले का
हर प्रयास - उसकी पहचान होती है . ख़ामोशी तक मुखर होती है . तो मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति
(http://csdevendrapagal.blogspot.in/) उनकी पहचान है और उनके शब्द एक मुलाकात आप सबसे जुड़ने का . उनकी कलम कहती है - " आप ही की तरह जीवन के साथ परीक्षण करता हुआ...लेकिन वैज्ञानिक नहीं, बल्कि आप सबके लिए खुद एक प्रयोग. साहित्य नहीं, बल्कि कल्पनाओं
की किसी किताब में धूल से छुपी कोई अनदेखी पंक्ति. किसी के लिए तोहफा, किसी के लिए भार. अपने अस्तित्व की खोज के लिए यहाँ आपके बीच हूँ. जीवन के अनुभवों
से उपजी सोच को अगर अभिव्यक्त करूँ तो शायद आपको पसंद आये....सौभाग्य मेरा की शिक्षा में कम्पनी सेक्रेटरी, कॉस्ट अकाउंटन्सी और एम्. कॉम करने के बाद (दुर्भाग्य से एल एल बी अधूरा छूट गया) भारत सरकार के स्वामित्वाधीन महारत्न कंपनी 'कोल इंडिया लिमिटेड' में वरीय वित्त अधिकारी के रूप में राष्ट्र को सेवायें
अर्पित कर रहा हूँ. जन्म के बाद की साँसे लेने का सौभाग्य बूंदी, राजस्थान, भारत में मिला. हाँ, मेरे व्यक्तिगत विचार में हसमुख और जिंदादिल इंसान हूँ लेकिन माफ़ करियेगा मेरी अभिव्यक्तियाँ कभी रोयेंगी, कभी सिसकेंगी. "मेरी हंसी के बदले आपके आसुओं का क्रय,
बस यही मेरा उद्देश्य यही मेरा परिचय"........."

2009 से ब्लॉग की दुनिया में अपनी पहचान बनानेवाले देवेन्द्र जी का जन्म 1984 में हुआ , हैरानी हुई न कि युवा सपने ,ख्याल उम्र से अधिक अनुभवी हैं . अनुभवों की
साँसें बड़ी बारीकी सेचलती हैं और हर सांस में आगत के सपने ! सुनामियाँ पलों की इकट्ठी होकर मंजिल बन जाती हैं , जितना बढ़ो उतनी राहत !
2009 के पन्ने पर जो एहसास हैं वे अंग्रेजी में हैं , हिंदी की पलकें 2010 में खुलीं और 26 वर्ष ने कहा -

नवल वर्ष मनाये कुछ इस तरह -

"सुखद लम्हों को याद करें
सबके लिए फ़रियाद करें
एक दूजे की खामियों को भुलाएँ,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

अपनों को साथ जोड़ें
गैरों से भी मुंह न मोड़ें
हर तरफ भाईचारा फैलाएं,
आओ नवल वर्ष मनाएं.

बीती असफलताओं को भूलें
नए स्वप्न देखें नई कल्पना करें
नवल उत्थान में नई रहें सजाएं,
आओ नवल वर्ष मनाएं."

"भ्रम में है ये दुनिया
बांटती रहती है ज्ञान
ब्रह्म, धर्म और कर्म का
पर न कर पाई है
सदियों बाद भी
परिभाषित
रिश्तों को.

सीमित कर लेती है
माता-पिता, भाई-बहिन
पति-पत्नी या दोस्त जैसे
प्राकृतिक बन्धनों तक ही
रिश्तों को.

वरना क्या नहीं होता?
रिश्ता,
पेड़ और छांव का
तारों और ग्रहों का
ग्रहों और उपग्रहों का
नदिया और किनारों का
जो निभाते चले आ रहे हैं
सृष्टि के सृजन से
और निभाएंगे भी
निर्वाण तक
रिश्तों को.

रिश्ता तो होता है
दुश्मनों के बीच भी
"दुश्मनी" का!
फिर क्यूँ न जोड़ें हम
भावनाओं और संवेदनाओं से भी
रिश्तों को?

और बना लें
"वसुधा-एव-कुटुम्बकम" को ही
रिश्तों की परिभाषा!!! "

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: चलन आँखें किस तरह हर क्रम को देखती हैं ! दिल किस तरह उसे समेटता है ....

" एक बहन, एक बेटी
नन्हे कदमो से
ठुमकते, चलते
वक्त के गुजरते गुजरते
अठाकेलियाँ करते करते
लड़ते झगड़ते
एक दिन हो जाती है
बड़ी.....
इतनी बड़ी कि चली जाती है
किसी नए घर में
बेटी बनकर
और उसका अपना घर
पराया तो नहीं पर
अपना भी नहीं रह जाता.....
और उसके अपने घर में
चली आती है एक नई बेटी
जो कुछ अरसे बाद
ले लेती है उसकी जगह.....
इसी तरह गुजरते गुजरते
कुछ दिन, महीने और सालो बाद
हो जाता है उसका
पराया, अपना
और
अपना, पराया...
कुछ तो इसको
त्याग कहेंगे
और कुछ कहेंगे
संसार का चलन!!! "
एक क्रमिक सोच है आगे बढ़ती उम्र की -

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: फर्क

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: डर, बंधन, झूंठ

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: कोई था वहाँ

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: जश्न, शर्त, ग़ज़ल ...

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: दायरा

जहां न पंहुचे रवि, वहां पहुंचे कवि - मेरी सोच, मेरी ... 

देवेन्द्र जी की ये रचनाएँ पाठकों से बहुत कुछ कहती हैं .

2012 में इनकी कृतियों की धार अविरल गति से बह रही हैं ....
अमरत्व के गागर में कुछ भाव भर लायी हूँ ,
जो आपको एक संतुष्टि देंगे -

मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति: यथार्थ अमरत्व उपदेश

"सर्व विदित है

इस मृत्यु लोक से

निश्चित है पलायन

सबका एक दिन.


भौतिक स्वरुप को

होना ही है ख़ाक

वही बनना और बिगड़ना

हो जाना फिर शून्य में विलीन.


यद्यपि शून्य जीवित रहेगा सर्वदा

और है भी

अनादि से अनंत तक.


इसी में गूंजती रहेगी

हमारी कर्म ध्वनियाँ

आचरण, सदोपदेश, विचार

अभिव्यक्तियाँ और सिद्धांत

शून्य के रहने तक.


स्पष्ट है ये आज भी अमूर्त है

और जो अमूर्त है अमृत्य भी.


इसीलिए, जगदगुरु श्री कृष्ण ने भी

यथार्थ सन्देश में कहा था

कर्म करो-फल की इच्छा नहीं.


कारण भी सुस्पष्ट है

फल या परिणाम नश्वर है

और कर्म, आत्मा की तरह ही

मरता नहीं कभी.


अनंत कारण बनते रहते हैं

परिणाम मगर बनता और मरता रहता है

और युग युग में बदलता जाता है

विज्ञान भी.


कर्म ही कारण है

कारण ही अमरत्व है

और गीता का

यथार्थ उपदेश भी....." कौन कहता है सब ख़त्म हो गया .... 

हमारा भारत आज भी अनंत संभावनाओं से भरा

हुआ है ,

एक नज़र तो डालो दोस्तों ....

12 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन.

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya parichay diya rashmi ji ........bahut sundar soch hai devendra ji ki aur rachanayein bhi adbhut hain.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अमरत्व का उपदेश प्रभावित कर गया, अभी फीड पर जाते हैं।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर परिचय...देवेन्द्र जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर परिचय देवेन्द्र जी का ,लाजबाब लिंक प्रस्तुति,....


RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

युवा रचनाकार देवेन्द्र जी का परिचय बहुत ही अच्छा लगा!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बेहद उम्दा परिचय करवाया आपने देवेन्द्र जी का ... आभार !

Maheshwari kaneri ने कहा…

देवेन्द्र जी से मिलकर अच्छा लगा..

मनोज कुमार ने कहा…

उपयोगी लिन्क्स मिले।

Anupama Tripathi ने कहा…

सत्यम ...शिवम ...सुन्दरम ....
आपके भाव अनमोल हैं शिवम ...
जालियां वाला बाग कि घटना याद रखने के लिए आभार आपका और नमन शहीदों का ...
एक बहुत पुरानी कविता, बचपन में याद की थी ...किसने लिखी है नहीं मालूम ....

"ये गंगा और जमुना नर्मदा का दूध जैसा जल ...
हिमालय की अडिग दीवार और ये मौन विन्ध्याचल ....
बताती है आरावली की हमें यह शांत सी छोटी ,
यहीं रना ने खायी देश हित में घास की रोटी ...
अगर इन रोटियों का ऋण चुकाना भी बगावत है ....
तो मैं ऐलान करता हूँ कि मैं भी एक बागी हूँ ...!!!!"

बहुत बढ़िया बुलेटिन है .....
ऐसे संकलन में मैं हूँ ...बहुत बहुत आभार ....!!

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

जितनी सुंदर उनकी लेखनी है ,उतना ही सुंदर उनका मनन ....जो उनकी रचनाओ और लेखों में नज़र आता है:)

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अच्छा परिचय...युवा शक्ति का... देश, ब्लोग व साहित्य का भविष्य उज्जवल है...

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