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सोमवार, 9 अप्रैल 2012

कुछ इनकी कुछ उनकी - एक अलग व्यंजन एक दिलचस्प स्वाद (4)



मिट्टी की सोंधी खुशबू सपनों की आँच भावनाओं का उठता धुंआ .... कही अनकही की सामग्री तैयार है ---- दर्द और ख्वाहिशों की चटनी के साथ !
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" प्रकाश में साया तो सब देखते हैं,
सफेदी में धब्बा तो सब देखते हैं.
धब्बे में अंकित, धवल बिम्ब देखो,
अँधेरे में किरण की एक बिम्ब देखो.
अँधेरी गुफा को, तुम दीपक बना लो.
उस साए में नन्ही किरण जो समायी,
सम्हालो उसी को, उसी को बचा लो.
मिटेगा गम ये सारा, ख़ुशी को बचा लो.
अँधेरी गुफा को तुम दीपक बना लो." http://pragyan-vigyan.blogspot.in/

" आज का युवा
अपनी परिपक्वता को
तमगे की तरह
लगा के चलता है

उसे कुछ ही समय में
आकाश छूना है

दौड़ लगी है
और हर कोई जीतना चाहता है
जब कि
मालूम है कि पिरामिड की नोक
पर खतरा है किसी भी तरफ
लुढ़क जाने का " http://vaanbhatt.blogspot.in/

" जो तेरे साथ-साथ चलती है
वो हवा, रुख़ बदल भी सकती है

क्या ख़बर, ये पहेली हस्ती की
कब उलझती है, कब सुलझती है

वक़्त, औ` उसकी तेज़-रफ़्तारी
रेत मुट्ठी से ज्यों फिसलती है " http://dkmuflis.blogspot.in/

" छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे " http://patli-the-village.blogspot.in/

"मेरी जडें फैली हैं दूर दूर तक,
और मेरी टहनियां व्याप रहीं हैं सारा आकाश
कब सोचा था मैने मेरा छोटा सा अस्तित्व इतना बनेगा विशाल
बीज से उठ कर लहरायेगी डाल डाल ।
छू लेंगी आसमान मेरी टहनियाँ
इन पर बैठ कर पंछी सुनायेंगे कहानियाँ
बनायेंगे छोटे छोटे घरौंदे
तिनका तिनका डोरा डोरा गूंथ के ।
नीचे बैठेंगे थके हारे पथिक
और मेरी टहनियां झुक जायेंगी अधिक
लडकियां डालेंगी झूले, युवतियाँ कजरी गायेंगी
और मेरी पत्तियाँ मुस्कुरायेंगी ।
बच्चे खेलेंगे मेरी छांव में
चढेंगे मेरे कंधों पर एक एक पाँव रख कर
और मैं खांचे बना कर उन्हें सम्हालूंगा ।
टहनियों में झुलाउंगा ।
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
किसी के चूल्हे, किसी के अलाव, किसी की चिता के लिये ।" http://ashaj45.blogspot.in/

" अपने घर में अपने हाथों आग लगाते देखे लोग
आग लगाकर खुदही उसमे जलभून जाते देखे लोग
जो भी करेगा बच पायेगा इसकी क्या गारंटी है,
फिर भी घात लगाकर हमने बम बरसाते देखे लोग " http://dheerendra11.blogspot.in/

"सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
आँखों के
इन स्याह घेरे मे
मेरी गलतिओं ने पनाह ली है
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना " http://rachana-merikavitayen.blogspot.in/


फिर मिलते है ...
 

7 टिप्पणियाँ:

केवल राम ने कहा…

बेहतर ....!

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बहुत अच्छे!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति,.....
मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए बहुत२ आभार...

RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बार फिर बेहद उम्दा लिंक्स और आपके अनूठे अंदाज़ से सजे इस बुलेटिन के लिए आपका आभार !

Rachana ने कहा…

rashmi ji aapka dhnyavad ki aapne mujhe yahan ka pata diya .padh kar aanand aaya
rachana

kavita vikas ने कहा…

simply beautiful

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