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गुरुवार, 19 जनवरी 2012

एक पत्र ब्लॉग राजा के नाम - ब्लॉग बुलेटिन

 ब्लॉग बुलेटिन आपका ब्लॉग है.... ब्लॉग बुलेटिन टीम का आपसे वादा है कि वो आपके लिए कुछ ना कुछ 'नया' जरुर लाती रहेगी ... इसी वादे को निभाते हुए लीजिये पेश है हमारी नयी श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" ... इस श्रृंखला के अंतर्गत हर हफ्ते एक दिन आप में से ही किसी एक को मौका दिया जायेगा बुलेटिन लगाने का ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो ! 


 "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में आज बारी है सुमित जी की...

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प्यारे ब्लॉग राजा

सादर ब्लॉगस्ते!

            कुछ वर्ष पहले जब मैंने लिखना आरम्भ किया था, तो मित्रों ने सुझाव दिया कि मैं अपनी रचनाओं को प्रकाशन हेतु समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में भेजूँ. मैंने उनकी बात मानकर इस कार्य को करना आरम्भ कर दिया. किन्तु यह क्या? कुछ दिनों के पश्चात ही मेरी सभी रचनाएं खेद सहित वापस आ गईं. दिल को बहुत ठेस पहुँची. ठेस पहुँचना स्वाभाविक ही था क्योंकि उन समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में जो भी रचनाएं छपती थीं, उनसे किसी मायने में भी मेरी रचनाएं कमतर नहीं थीं. मन ने विचार किया कि लेखन को राम-राम कह दिया जाए और तभी एक दिन अचानक आप मेरे जीवन में आ धमके. एक परिचित ने 'सुमित के तड़के' नाम देकर आपसे मेरा मिलन करवा दिया. अब मुझे किसी समाचार पत्र अथवा पत्रिका की कृपा की आवश्यकता नहीं रही और मैं स्वयं ही अपनी रचनाओं का प्रकाशक बन बैठा. अब जब भी तुम पर अपनी रचनाएँ प्रकाशित करता तो अन्य ब्लॉगरों के विचार व सुझाव टिप्पणियों के रूप में मेरे समक्ष उपस्थित हो जाते. पहले मैं अपने मित्रों व अपने आस-पड़ोस में ही प्रसिद्द था, किन्तु आपकी कृपा से अब मैं वैश्विक लेखक बन चुका था. विदेश में बसे अनेक भारतीय ब्लॉगर मित्रों से परिचय हो चुका था, जो समय-2 पर मेरी रचनाओं पर अपना प्रेम बरसाते रहते थे. यह ब्लॉग अर्थात तुम्हारी ही कृपा थी जो देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों व टी.वी. चैनलों ने मेरी खैर खबर ली. एक दिन ऐसा भी आया कि एक पत्रिका समूह ने लेखन के लिए "प्रहरी अवार्ड" से सम्मानित किया. हर चीज के नफे व नुकसान होते हैं. तुम्हारे चक्कर में पड़कर इन्टरनेट (अंतरजाल) का तगड़ा चस्का लग चुका है. अब जब भी तुम पर कोई नई पोस्ट डालता हूँ, तो मन तब तक बेचैन रहता है, जब तक कि टिप्पणी के रूप में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल जाती. चाहे नौकरी पर रहूँ या फिर किसी कार्यवश घर से बाहर कहीं और, मन में यही उधेड़बुन बनी रहती है कि क्या मेरी नई रचना पर किसी ने टिप्पणी की होगी या नहीं. घर पहुँचकर सबसे पहले कंप्यूटर से ही भेंट होती है. यदि रचना पर कोई टिप्पणी आई हो तब तो ठीक, अन्यथा मन बेचारा उदास हो इसी उलझन में लग जाता है कि शायद रचना में दम नहीं था हो अन्य ब्लॉगर बंधुओं को आकर्षित नहीं कर सकी. फिर अन्य ब्लॉगों पर विचरण करने पर ज्ञात होता है कि कई ब्लॉगरों की अति साधारण रचनाओं पर भी टिप्पणियों का शतक लग चुका होता है. विशेष रूप से महिला ब्लॉगरों के ब्लॉग तो टिप्पणियों से लबालब भरे होते हैं. ब्लॉग जगत में भी अब गुटबंदी आरम्भ हो चुकी है. कुछगुट टिप्पणियों द्वारा प्रशंसा के पुल बांधकर एक-दूसरे को तुष्ट करते रहते हैं. हालांकि इस भीड़ में कुछ ऐसे भी भले ब्लॉगर हैं जो प्रत्येक अच्छी रचना पर निसंकोच उचित व सटीक टिप्पणी देकर ब्लॉगरों का लेखन धर्म की ओर से मोहभंग होने से बचाए हुए हैं. अब तो पूरे देश में ब्लॉगर सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं. इस सम्मेलनों का उद्देश्य होता है ब्लॉग द्वारा हिंदी लेखन को प्रोत्साहित करना व ब्लॉग सम्बंधित तकनीकी समस्याओं का समाधान करना किन्तु वास्तव में ये सम्मेलन आपस में गप्प मारने, खाओ-पीयो और खिसको के सिद्धांत का पालन करते अधिक प्रतीत होते हैं. अभी हाल ही के दिनों में ब्लॉग पर आधारित पुरस्कार प्रदान किये गए. जिन्हें पुरस्कार मिले वे तो प्रसन्न दिखे, किन्तु जिन्हें पुरस्कार नसीब नहीं हुए, उन्होंने तो इन्हें विवादित ही घोषित कर दिया. कुछ ब्लॉगरों ने जोश में आकर इन पुरस्कारों को ब्लॉगिंग के ऑस्कर पुरस्कार की उपमा दे डाली. खैर कुछ भी हो इन सभी प्रपंचों से हिंदी का प्रचार-प्रसार तो बढ़ ही रहा है. जिसे देखकर मन एक सुखद अनुभूति से भर उठता है. आपका साथ पाए लगभग चार वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं. आपके द्वारा मुझे बाहरी दुनिया के लोग भली-भाँति जानने लगे हैं किन्तु अपने मित्रों, आस-पड़ोस के लोगों व सगे-सम्बन्धियों के लिए विलुप्त होने जा रहा प्राणी बन चुका हूँ. अब मेरा अधिकाँश समय कंप्यूटर पर त्राटक क्रिया करते हुए व इन्टरनेट (अंतरजाल) में फंसे हुए ही बीतता है. अब भी कमरे में एकांत में बैठा कंप्यूटर पर यह रचना लिखने में मस्त हूँ ताकि इसे तुम पर प्रकाशित कर अपने अंतरजालीय मित्रों को अपने सक्रिय होने का आभास करा सकूँ तथा हिंदी की निरंतर ऊंची होती इमारत में रचनारूपी एक ईंट अपनी भी जोड़ सकूं.

बाकी फिर कभी...
आपके मोहपास में फँस चुका
एक हिंदी ब्लॉगर


      यह तो हुआ व्यंग्य अब यदि सच कहा जाए ब्लॉग जगत बहुत ही प्यारा है और प्यारे हैं हिंदी ब्लॉगर. आज जो मैं थोडा बहुत ठीक-ठाक लिख पा रहा हूँ, वह इनके प्रोत्साहन और स्नेह का ही परिणाम है. सोचता हूँ यदि मैं ब्लॉग लेखन न आरंभ करता तो क्या आज इस मुकाम पर पहुँच पाता. ब्लॉगिंग द्वारा हम घर पर बैठे-बैठे ही एक परिवार के रूप में जुड़ चुके हैं. सही मायने में अब हम कह सकते हैं ब्लॉग लेखन द्वारा "वसुदेव कुटुम्बकम" की कहावत चरितार्थ होती जा रही है. "वसुदेव कुटुम्बकम" के अभियान को सफल बनाने हेतु कुछ समय पहले मैंने ब्लॉगर बंधुओं को जानने और पहचानने का अभियान आरंभ किया है.

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल

लोग मिलते गए और कारवाँ बनता गया.

इस क्रम में कुछ प्यारे लोगों से मुलाक़ात हुई...

कामना करें कि यह सिलसिला यूँ ही चलता रहे. आप सब भी प्रतीक्षा करें. आपका सुमित प्रताप सिंह एक न एक दिन आपसे मिलने अवश्य आएगा.
आपका एक ब्लॉगर बन्धु

32 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यहाँ भी कहने सुनाने की सनसनी .....और टिमटिमाते लिंक्स

vidya ने कहा…

बहुत बढ़िया...
आपकी हर बात खरी...
बधाई हो बधाई...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुमित जी ,

आपके अनुभवों को पढ़ा ... ब्लॉग पर टिप्पणियाँ सच ही उर्जा देने का काम करती हैं ... आपके इस विचार पर मुझे आपत्ति है --

"फिर अन्य ब्लॉगों पर विचरण करने पर ज्ञात होता है कि कई ब्लॉगरों की अति साधारण रचनाओं पर भी टिप्पणियों का शतक लग चुका होता है. विशेष रूप से महिला ब्लॉगरों के ब्लॉग तो टिप्पणियों से लबालब भरे होते हैं. ब्लॉग जगत में भी अब गुटबंदी आरम्भ हो चुकी है. "

आपत्ति इस लिए कि -- ब्लॉग ही नहीं बल्कि दुनिया व्यावहारिकता से चलती है ... कोई आपके घर एक बार आ जायेगा ..दो बार आजायेगा ..हो सकता है तीन बार भी आ जाये ..लेकिन यदि आप नहीं उसके घर जायेंगे तो शायद चौथी बार न आये .. ऐसे ही ब्लॉग की दुनिया है .. ब्लोग्स पढ़ने के साथ टिप्पणियाँ देने की मेहनत भी करनी होती है तभी आपके अपने ब्लॉग पर टिप्पणियाँ मिलती हैं ..बाकी तो आप सभी प्रबुद्ध हैं ... उच्च कोटि के साहित्यकार हैं , आम लेखकों की क्या बिसात जो आप लोगों का मुकाबला कर सकें ..

लेख के लिए साधुवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

अरिस्स .पहिला शॉट ही बाऊंड्री पार ..का हो सुमित बाबू .घनघोर आइडिया लाए हैं जी । बेमिसाल पोस्टों तक ले जाते सारे लिंक्स यहीं समेट कर बेहतरीन काम किया आपने । जय हो जय हो ..रपोटर को रपोटर की तरफ़ से बधाई लीजीए ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मेरी टिप्पणी यहाँ नहीं दिख रही है ..शायद स्पैम में है .. उचित समझें तो उसे पब्लिश कर दें

सदा ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति

shikha varshney ने कहा…

बिलकुल सच कहा संगीता जी ने.ब्लॉग की दुनिया भी बहार की ही तरह है.यहाँ भी अपनी हर कमजोरी या गलती का ठीकरा महिलाओं के सर पर फोड दिया जाता है. ब्लॉग जगत में ऐसे बहुत से पुरुष ब्लोगर थे और अब भी हैं जिनकी चार पंक्तियों पर भी १००-२०० टिप्पणियाँ होती थीं अब भी होती हैं लेकिन उन्हें कोई कुछ नहीं कहता. क्यों ..वह तो हक है उनका .पर भला कोई महिला आगे आ जाये ये कैसे हमारा पुरुषवादी समाज स्वीकार कर सकता है.
हम सामने वाले से नमस्ते करते हैं और वह आगे से कोई रिस्पोंस नहीं करता तो शायद हम एक बार उसे फिर नमस्ते कहेंगे वह फिर भी जबाब नहीं देता तो अगली बार से हम उसे नमस्ते कहना छोड़ देते हैं.यही व्यवहार हर दुनिया में हर क्षेत्र में लागू होता है.हमें तो इतनी ही समझ है..आप लोग ज्यादा गुणी और समझदार हैं बेहतर जानते होंगे.लेख के लिए आभार.

vandana gupta ने कहा…

क्यो टिप्पणियो के फ़ेर मे पडा जाये
बस सबसे हंसकर मिला जाये

अजय कुमार झा ने कहा…

संगीता जी ,
आपको हुई असुविधा के लिए खेद है , टिप्पणी को स्वत: ही प्रकाशित होना चाहिए था ,अपने आप क्यों नहीं हुई देखता हूं ।

हिंदी ब्लॉगिंग ने धीरे धीरे संचालकों के बिना लिखना पढना सीख लिया है जिस दिन टिप्पणी के फ़ेर से बाहर निकलेंगे , दिशा और दशा अलग होगी । शिखा जी ने मूल मंत्र बता ही दिया है ..पारस्परिकता के नियम पर ही कोई भी समाज चलता है । अपने विचार रखने का शुक्रिया ।

sonal ने कहा…

ब्लॉगर ब्लॉगर होता है ...महिला या पुरुष के वर्गों में मत बाटिये इस तरह की बहस छेड़ना लोकप्रियता पाने का तरीका भी हो सकता है ...
जब परीक्षाओ में लडकिया बाज़ी मारती है है headline बनती है तब भी आपको शक होता होगा ....स्वीकारिये योग्यता किसी धर्म जाति या लिंग की बपौती नहीं है ...

रचना ने कहा…

ब्लॉग राजा
उफ़ कितनी बार कहा गया हैं ब्लॉग न्यूट्रल शब्द हैं ना राजा ना रानी
ब्लॉगर शब्द भी न्यूट्रल हैं
पता नहीं लोग कब समझेगे
और संगीता और शीखा जी ने जो कहा उस पर ध्यान जरुर दे
सोनल की बात में भी दम हैं
शिखा की लिखी एक पोस्ट और खुशदीप की जवाबी पोस्ट याद आगयी हैं पुरुष ब्लोगर और महिला ब्लोग्गर पर

रचना ने कहा…

http://shikhakriti.blogspot.com/2011/06/blog-post_17.html
http://www.deshnama.com/2011/06/blog-post_18.html
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/12/blog-post_29.html
kuchh link jo laekhak padh lae to bhrm nahin rahegae

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

Hindi chitthakari ki sabse badi visheshta VIVAD ? Itna facebook par to nahin hai, jabki FACE aur BOOK donon pulling hain, kya is par bhi hai objection putriyon aur snehil sisters ko.

BS Pabla ने कहा…

आपके इस लेख में बेचारे ब्लॉग का तो तिया पांचा कर दिया गया महिला या पुरुष के वर्गों में बांटने ना बांटने के लिए तो रचना, पत्रिका, टिप्पणी, आवश्यकता, आपत्ति , व्यवहारिकता, कृपा, कमजोरी, गलती, दिशा, दशा, प्रतिक्रिया, पारस्परिकता, बाजी, बपौती, जाति, ब्लॉगिंग, नौकरी, गुटबंदी, अनुभूति, ईंट ने क्या बिगाड़ा है भई?
इन्हें भी घसीटा जाए मैदान में!

BS Pabla ने कहा…

ये सम्मेलन आपस में गप्प मारने, खाओ-पीयो और खिसको के सिद्धांत का पालन करते अधिक प्रतीत होते हैं

प्रैक्टिकली क्या होता है ये भी तो बताना था :-)

BS Pabla ने कहा…

बाक़ी आपकी अभिव्यक्ति मुस्कराहट दे गई
लय बनाए रखिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अविनाश जी ,
विवाद की शुरुआत या टिप्पणियों पर चर्चा भी पुरुष ही करते हैं .. ब्लोगर को क्यों परिभाषित करते हैं महिला ब्लोगर और पुरुष ब्लोगर से ...
फेस बुक पर कोई नहीं कहता की किसको कितने कमेंट्स मिले ... इस लिए वहाँ विवाद की गुंजाइश नहीं है ..यहाँ पर हर रोज किसी न किसी ब्लॉग पर यही लिखा होता है कि महिलाओं के ब्लॉग पर टिप्पणिय लबालब भरी होती हैं .. दुःख होता है ऐसी मानसिकता पर ..
शुभकामनायें

BS Pabla ने कहा…

फेस बुक पर विवाद की गुंजाइश नहीं

संगीता जी तनिक नज़र दौड़ाइए कि लेखक/ टिप्पणीकारों में से कौन नहीं है फेसबुक पर :-D

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

इंतजार रहेगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक अभिव्यक्ति..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

संगीता जी कहने वाले कहते रहें
हमें धीरज धरना है
धरा ने कभी नहीं कहा कि
मुझे किसी का भार नहीं सहना है
सहनशीलता ही सबसे बड़ा गहना है
विचारों का तो काम ही बहना है
जो कहते हैं उन्‍हें कहने दो
कान मत दो, नाक मत दो
आंख मत दो, टिप्‍पणी मत करो
चाहे आंख दिखा दो
इतनी ही काफी है
काफी गर्म हो तो अच्‍छी
नहीं तो फीकी चाय भी चलेगी।

RITU BANSAL ने कहा…

सबकी अपनी अपनी सोच है ..
ब्लॉग जगत से काफी कुछ सीखने को मिलता है निःसंदेह..
kalamdaan.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अविनाश जी ,

धरा है धैर्य
हमने बहुत
नहीं किया कभी
कोई शिकवा -गिला
फिर भी
महिलाओं को
हमेशा
विरोध ही मिला ,
आपकी बात
करती हूँ शिरोधार्य
अब नहीं करुँगी
कुछ ऐसा विचार
इतना ही कहना
शायद काफी है
अब यह विषय
यहीं बंद करती हूँ
कॉफी हो तो अच्छा
नहीं तो
बिना चीनी की
चाय ही पीती हूँ :):)

Atul Shrivastava ने कहा…

बढिया।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सुमित जी आपका बहुत बहुत आभार जो आपने ब्लॉग बुलेटिन पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में अपनी यह पोस्ट लगाई ! हमारी इस नयी श्रृंखला को एक बढ़िया शुरुआत देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद !

रचना ने कहा…

FACE aur BOOK donon pulling hain

kisnae kehaa
grammer daekh lae ek baar jarur
http://en.wiktionary.org/wiki/face
http://en.wiktionary.org/wiki/book
ek noun haen dusra verb


Hindi chitthakari ki sabse badi visheshta agyaan haen net par sab uplabdh haen lekin yahaan impulsive pratikriyaa hotii haen

अविनाश वाचस्‍पति अन्‍नाभाई ने कहा…

रचना जी, आप इसे अपना विरोध और मेरा अहंकार मत समझिएगा, काफी हल्‍के में लीजिए। बतर्ज अमिताभ बच्‍चन कहूं तो 'जहां अन्‍नाभाई ऊर्फ अन्‍नाभाई ऊर्फ अन्‍नास्‍वामी बतला देते हैं, शब्‍दकोष और ग्रामर वहीं से अपना रवैया बदल लेते हैं' आप एक बार पुन: गूगल बाबा और विकीपीडिया में जाकर जांच कर लीजिए।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

संगीता जी की टिप्‍पणी ने मन में गीत बजा दिया, आभार।

रचना ने कहा…

agar ham vishay tak hi simit rahey to achcha hogaa aur rahee baat virodh aur ahankaar ki to vimarsh is sae parae hotaa haen
amitabh ne kab kyaa kehaa mae is vishay me kuch nahin kehsakti aur reh gayee baat blog jagat mae aap kae anaa bhai bananaae ki to yae aap ki marzi haen aap blog jagat mae apnae ko kis paydaan par rakhtae haen maere hisaab sae yahaan sab barabar haen . koi apnae ko badaa maanae yae uski marzi
aap kaa swasthya aasha haen improve kar rahaa hogaa

Sumit Pratap Singh ने कहा…

आप सभी के प्यार संग
मिली हमें फटकार
आभार बहुत आभार...

विनोद पाराशर ने कहा…

किसी भी लेखक की रचना का मूल्यांकन,केवल उसकी रचाना पर मिली टिप्पणियों से नहीं किया जा सकता.यह ठीक हॆ कि लेख पर मिली टिप्पणियां,लेखक के लिए उर्जा देनें का कार्य करती हॆं,लेकिन अधिक टिप्पणियों के फेर में पडकर,अपने लेखन से समझॊता करना,ठीक नहीं हॆ.किसी ब्लाग पर अधिक टिप्पणियों को देखकर,अपने अंदर किसी प्रकार की आत्मग्लानी का भाव भी एक प्रकार की अपरिपक्वता ही हॆ.हर लेखक का लेखन उसकी प्रकृति के अनुरुप होता हॆ,विशेष होत्ता हॆ-हमें यह समझना चाहिए.ब्लाग पर मिली टिप्पणियों को लेकर-किसी विवाद में उलझना-बेकार हॆ.जो मिल जाये,उसी में संतोष करना ही ठीक हॆ.

MOHAN KUMAR ने कहा…

well written.

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